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घर के बाहर खाट लगादी बाबाजी

बोतल पर क्यों  डाट लगादी बाबाजी
मखमल में क्यों टाट लगादी बाबाजी



हमने जिसको जो भी ज़िम्मेदारी दी
उसने उसकी वाट  लगादी बाबाजी



कुल्फी खानी थी तो पहले  कह देते
अब तो मैंने चाट लगादी बाबाजी



पत्नी ख़ुश है क्योंकि  बूढ़े पापा की
घर के बाहर खाट  लगादी बाबाजी



हाय डार्लिंग ! की जगह बहनजी कहने पर
लड़की ने  चम्माट लगादी बाबाजी



पैसा लेकर प्रश्न  पूछने वालों ने
संसद में भी हाट लगादी बाबाजी



कौन बचाये जोशी को अब 'अलबेला'
जब मोदी ने काट लगादी बाबाजी



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Comment

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Comment by Albela Khatri on June 15, 2012 at 9:10am

धन्यवाद अजय सिंह जी.....

Comment by Ajay Singh on June 15, 2012 at 9:06am

Albela  ji ...........

                   Lajabab.

Comment by Albela Khatri on June 15, 2012 at 7:32am

आपके उदार और विराट मन के  स्नेहिल उद्गारों को मैं  शिरोधार्य करता हूँ  और आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ .
सम्मान्य उमाशंकर जी , 
यों ही  मोहब्बत बनाए रखिये..........सादर

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 15, 2012 at 12:41am

मैं कोई-ववि नहीं हूँ| ववि को छोड़ दें...आज की तारीख में आप कवि हैं आप पर माँ सरस्वती की कृपा है  और ये कृपा आप पर बनी रहे यही कामना के साथ ...........एक तुक बंद (उमाशंकर )प्रभु माफ करना तुकबंदी तो हम करते हैं

Comment by Albela Khatri on June 15, 2012 at 12:36am

आप ठीक  कह रहे हैं  उमाशंकर जी,
रस है.....मेरी कविता में आपको और कुछ मिले न मिले, रस ज़रूर मिलेगा  और ये रस  प्रभु का दिया हुआ है . आशीर्वाद दीजिये कि  रस बना रहे.......

___आभार

Comment by Albela Khatri on June 15, 2012 at 12:32am

आदरणीय भाई  उमाशंकर मिश्रा जी,
पद्मासन  पर विराजित माँ शारदा की  सतत साधना करने वालों के लिए  पद्मश्री का महत्व ही क्या है ?  कवि तो वे हुए  जिनकी पालकी स्वयं सम्राटों  ने अपने कन्धे  पर उठाई . पद्म अथवा  छद्म पुरस्कार के लिए आवेदन करने वाले और जोड़ तोड़  का जुगाड़ बिठा कर सम्मान प्राप्त करने वाले जुगाड़ू  लोग कवि  कहाँ होते हैं ? कवि के लिए  तो माँ की कृपा से रची गई रचना का  एक एक  पद कई कई  पद्मों पर  भारी होता है .

बहरहाल........
आपने उन्मुक्त मन से सराहना की है . ये देख कर मैं नत मस्तक हूँ  और  आपका हार्दिक आभारी हूँ.   हाँ, इतना अवश्य  संशोधन कर लें कि  मैं कोई कवि-ववि नहीं हूँ जी.........एक तुक्कड़ हूँ....तुक मिलाता रहता हूँ और लोगों का मनोरंजन करता हूँ  बस.

___आपका  बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 15, 2012 at 12:17am

मुझे मालुम है की आपने सैकड़ों मंचों में शिरकत की है

परन्तु आज आपकी रचनाओं में विधा है दोहों से लेकर छंद तक 

आपकी मास्टरी है रचना में काव्य है और उस काव्य में रस है

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 15, 2012 at 12:13am

हे प्रिय अलबेला जी ऐसी रचना पर दिल कुर्बान होने को होता है
आपकी ऐसी गरिमामय रचना पढ़सुन कर मन प्रफुल्लित हो
जाता है| वरना क्या बताए इस हिंदुस्तान में फूहड़ रचना लिखने वाले
फूहड़ चुटकुलों को कविता में ढाल कर सुनाने वाले अकवियों को  पद्मश्री  
मिल जाती है ये हमारे  लिए गर्व की बात है की ओ.बी.ओ.की क्लास
में निखर कर एक सितारा अपनी हास्य एवं उच्च कोटि के व्यंग से
एक नया मंच निर्मित करेगा और इस देश की जनता को उस पर नाज होगा
बेहतरीन बेहतरीन

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