तेज़ हवा और एक ही तीली बाबाजी
फिर भी हमने बीड़ी पी ली बाबाजी
घर की सादी छोड़ के बाहर मत ढूंढो
रंग-रंगीली, छैल-छबीली बाबाजी
रूप के रस में जो डूबा वो न उबरा
ये मदिरा है बहुत नशीली बाबाजी
नेताओं के मुख-मण्डल पर लाली है
अपनी आँखें गीली गीली बाबाजी
केवल पगड़ी नहीं, मुझे तो लगती है
पी.एम. की पतलून भी ढीली बाबाजी
कितना भी खींचो इसको, ना टूटेगी
महंगाई है चीज़ लचीली बाबाजी
जिसने सबको अमृत बांटा 'अलबेला'
लाश उसी की मिली है नीली बाबाजी
जय हिन्द !
Comment
अलबेला जी सादर नमस्कार, चार पंक्तियाँ मेरी तरफ से भी :
दुनिया कितनी रंग रंगीली बाबा जी ।
छेड़ी है एक राग सुरीली बाबा जी॥
रंग देख के अलबेला की ग़ज़लों का,
हमने भी थोड़ी सी पी ली बाबा जी॥......
अब क्या कहूँ अलबेला जी आपने ने तो पूरे मंच पे धमाल मचा रखा है ! बाबा जी को बहुत बहुत बधाइयाँ !! बहुत उम्दा रचना !!
शुक्रिया उमाशंकर मिश्राजी.........बहुत बहुत धन्यवाद आपकी इस सराहना के लिए
वाह वाह क्या बात है
मजेदार.... प्रिय अलबेला जी ये बाबा जी का सीरियल
बहुत बढ़िया है चलने दो ......केवल पगड़ी नहीं, मुझे तो लगती है
पी.एम. की पतलून भी ढीली बाबाजी हिम्मत को दाद भाई
आपने तो पगड़ी तो पगड़ी पतलून भी उछाल दी
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