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खून के उफान को ....

टूटते हैं टूटने दो, अब ह्रदय के तार को
छूटते हैं छूटने दो, खून के उफान को
हटो छोडो रास्ता अब, कफ़न सर पर लिये हैं
मौत से अब डर किसे है, मौत से लगते गले हैं
सह चुके अब ना सहेंगे, इस देश के अपमान को
टूटते हैं टूटने दो, अब ह्रदय के तार को
विश्व में उपहास के, कारण बनाये जाते हैं
खद्दरों के भेष में, दीमक हजम कर जाते हैं
इस देश की संपत्ति और, इस देश के सम्मान को
छूटते हैं छूटने दो, खून के उफान को
आम आदमी यहाँ, हाशिए में होता है
जिंदगी कि दौड में, हर राह राह रोता है
कब समझ पायेंगे हम, इन नेताओं के स्वांग को
छूटते हैं छूटने दो खून के उफान को

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 2, 2012 at 5:03pm

टूटते हैं टूटने दो, अब ह्रदय के तार को 
छूटते हैं छूटने दो, खून के उफान को 
चलो हटो न रोको डगर, सर पे हम कफ़न लिए,  
मिलते है मौत से गले, मरने से अब डर किसे, 
सह चुके अब ना सहेंगे, देश के अपमान को 
टूटते हैं टूटने दो, अब ह्रदय के तार को.......वाह वाह बहुत ही प्यारी और ओजपूर्ण रचना, बधाई हो |

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 2, 2012 at 9:32am

मौत से अब डर किसे है, मौत से लगते गले हैं
सह चुके अब ना सहेंगे, इस देश के अपमान को
टूटते हैं टूटने दो, अब ह्रदय के तार को...................

बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ उमाशंकर जी । जोश भर देने वाली रचना को मंच पर प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत बधाई !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 2, 2012 at 8:59am

उमाशंकर मिश्र जी आज देश के  सूरते हाल पर हर खून में उबाल है हर दिल में रोष है आपकी रचना भी यही सब कह रही है ...बहुत अच्छी

Comment by Albela Khatri on June 2, 2012 at 8:20am

waah waah..........Umashanker Mishra ji, kamaal kar diya ......aapne to rakt me ubaal laa diya .....shabdon ka  aisa  sundar pravaah ...aur woh bhi  aise  samyik vishya par..............gazab hai

badhaai.....  bahut bahut badhai !

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