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ईमानदार
बेईमानी बचाता
थक ही गया

 
इन्सान ही हैं
दिन गुजारते जो
तंग गली में

 
जिन्दा दिल हैं
काश समझ पाते
जिन्दा दिल को
 
 
 
बड़ा खतरा
बाहर वाले नहीं
अपने ही हैं

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Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on May 7, 2012 at 10:41am

आदरणीय नीलम जी नमस्कार,

ये विधा बड़ी रोचक होती है, पढने/लिखने में बड़ा आनंद आता है. सुन्दर प्रस्तुति.

Comment by Sarita Sinha on April 15, 2012 at 1:42pm

आदरणीय नीलम जी नमस्कार,

हाइकू शब्द का सही अर्थ तो नहीं जानती हूँ लेकिन आप ने क्या कमाल लिखा है...बिहारी को भी पीछे छोड़ दिया....
उनको तो सागर भरने के लिए गागर की  ज़रूरत पड़ती थी....आप ने तो चम्मच में भर दिया...लाजवाब...

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