For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रोज़ एक ज़ख्म नया दिल पे लगाया तूने
मेरी हंसती हुई आँखों को रुलाया तूने




खो चुका था मै गमो दर्द के सन्नाटों में
मेरी बेताब तमन्ना को जगाया तूने




मेरी उल्फत को न समझी है न समझेगी कभी
जब भी फुर्सत मिली इस दिल को दुखाया तूने




गैर की बज़्म सजाने के लिए तूने सनम
मुझसे हर रोज़ बहाना ही बनाया तूने




तेरा एक एक सितम हंस के "अलीम" ने सहा
उसके lab पर कभी शिकवा तो न पाया तूने

Views: 347

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sanjay Kumar Singh on April 19, 2010 at 7:55am
Badhiya likh rahey hai Aleem jee, aapka pahaley ka post bhi padha achha hai, eesi tarah likhtey rahiyey,thanks,
Comment by Admin on April 19, 2010 at 7:47am
रोज़ एक ज़ख्म नया दिल पे लगाया तूने
मेरी हंसती हुई आँखों को रुलाया तूने

अलीम जी, नमस्कार, एक बार फिर शानदार रचना हम लोगो के सामने है, बहुत अच्छा शेर बन पडा है,बहुत बढ़िया, आप अच्छा लिख रहे है,

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 17, 2010 at 10:19pm
मेरी उल्फत को न समझी है न समझेगी कभी
जब भी फुर्सत मिली इस दिल को दुखाया तूने
अलीम भाई ,पहले की तरह ये रचना भी बहुत ही शानदार है, बहुत खुबसूरत शेर आपने लिखा है,बहुत बहुत धन्यबाद,आगे भी इसी तरह लिखते रहिये,
Comment by aleem azmi on April 17, 2010 at 7:06pm
aap sabhi ke comments ka swagat hai...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
10 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
18 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
18 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service