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एक शायर की अभिलाषा !!

आग हूँ कुछ पल दहक जाने की मोहलत चाहता हूँ ,

दर्द को पीकर बहक जाने की मोहलत चाहता हूँ.


फिर बिखर जाऊँगा एक दिन पिछले मौसम की तरह ,

फूल हूँ कुछ पल महक जाने की मोहलत चाहता हूँ,


पहले कीलें ठोकिये पहनाईए काँटों का ताज ,

फिर मैं सूली पर लटक जाने की मोहलत चाहता हूँ.


आपकी इन बूढ़ी आँखों का सहारा बन सकूं ,

इसलिए बाबा शहर जाने की मोहलत चाहता हूँ.


कतरा कतरा चूसकर हर शख्स मीठा हो गया ,

आपसे मालिक नमक पाने की मोहलत चाहता हूँ.


आपके पिंजड़े ने जिसको कर दिया था अधमरा ,

हूँ वही चिडिया चहक जाने की मोहलत चाहता हूँ .

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Comment

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Comment by विवेक मिश्र on September 15, 2010 at 2:56am
/फिर बिखर जाऊँगा एक दिन पिछले मौसम की तरह ,

फूल हूँ कुछ पल महक जाने की मोहलत चाहता हूँ,/

भई वाह... क्या बात है. सारे शे'अर बढ़िया बन पड़े हैं. मेरी मुबारकबाद कबूलें...

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 14, 2010 at 9:32am
कतरा कतरा चूसकर हर शख्स मीठा हो गया ,
आपसे मालिक नमक पाने की मोहलत चाहता हूँ.

बहुत खूब एक एक शे'र बेजोड़ है, अपेक्षाकृत लम्बी रदीफ़ को लेकर ग़ज़ल कहना थोड़ा मुश्किल जरूर होता है किन्तु आपने जिस खूबसूरती से निभाया है वो काबिले गौर है |
Comment by आशीष यादव on September 14, 2010 at 6:47am
'अभिनव' जी को मेरा प्रणाम,
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने| बिलकुल जमाने के साथ| वाह वाह

आपकी इन बूढ़ी आँखों का सहारा बन सकूं ,

इसलिए बाबा शहर जाने की मोहलत चाहता हूँ.
Comment by baban pandey on September 13, 2010 at 10:41pm
वाह भाई पाण्डेय जी ....
"आपके पिंजड़े ने जिसको कर दिया था अधमरा ,

हूँ वही चिडिया चहक जाने की मोहलत चाहता हूँ ."... जय हो भाई

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