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पेंच जो लड़ी......


चढ़ी पतंगे डोर पे,छूने को आकाश.

होड़ मची है काट की,उड़े पास ही पास.

उड़े पास ही पास,उमंगें नभ को छूती.

वो...काट की बोल रही,होंठों पे तूती.

कहता है अविनाश पेंच जो लड़ी,

कटी पतंगें कहलाती ,दम्भी और नकचढ़ी.

                        अविनाश बागडे.

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Comment by AVINASH S BAGDE on January 15, 2012 at 5:11pm

aadarniya YOGRAJ JI V GANESH JEE 'BAGI'

aapk logo ka aabhar.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 14, 2012 at 3:26pm

सामयिक कुण्डलिया छंद हेतु आभार अविनाश जी |


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 13, 2012 at 11:20am

वाह वाह आदरणीय अविनाश भाई जी, सुन्दर कुंडलिया छंद कहा है. साधुवाद स्वीकारें. 

कृपया ध्यान दे...

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