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कैसे तुझे  बताऊँ माँ कि
याद तेरी यहाँ आती  है
तेरे प्यार की वो दुनियां अब
आँख मेरी भर जाती  है |

भूखी तू रह जाती है पर
खाना मुझे  खिलाती  है
राह का मेरी मिटाने अँधेरा
तू दीपक बन  जाती  है |

घिर जायें हज़ार दुखों से

जब,राह नजर न आती है
गोद तेरी तो उस पल भी माँ
स्वर्ग  धरा  बन  जाती  है |

दया  भाव  की  तू  मूरत
नित शांत नज़र तू आती है
मेरी तो हर भूल को माँ तू
पल में ही  भूल जाती  है  |

अब बदला मैं हू या वक़्त बदल
गया ,पर तू बदल न पाती है
दुनिया तेरी वो,अब मेरा एक
ख्वाब  बनकर रह जाती  है |

भागदौड़  में  अब  मेरी  ये
जिंदगी  खत्म  हो जाती है
मंजिल ये दूर ले न जाये तुझसे
ये  चिंता  मुझे  सताती  है  |

यूँ तो  सुख हैं  हजारों यहाँ  पे
पर तेरी कमी न पूरी हो पाती है
बिन तेरे, खिली कली  मन की 
मेरी, पल में  मुरझा जाती  है |

कैसे  करू  नमन  तेरा  माँ
कोई  राह  नज़र  न आती है
मूरत  में  भागवान  के  तेरी
सूरत  नज़र  अब  आती  है
सूरत नज़र अब आती है |||||

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Comment by Abhinav Arun on October 23, 2011 at 5:51pm

अजय जी एक सशक्त और भाव पूर्ण रचना | कई रंग है इस रचना के | आँखें नाम हों आयीं ! ऐसा लगा जैसा मैं स्वयं इसे अपनी माँ के लिए पढ़ रहा हूँ | यही इसकी शक्ति है | हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ||

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