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कसौटी जिन्दगी की .. (छंद - हरिगीतिका)

यह सत्य निज अन्तःकरण का सत्त्व भासित ज्ञान है

मन का कसा जाना कसौटी पर मनस-उत्थान है

जो कुछ मिला है आज तक क्या है सुलभ बस होड़ से?
इस जिन्दगी की राह अद्भुत, प्रश्न हैं हर मोड़ से    ||1||


अब नीतियाँ चाहे कहें जो, सच मगर है एक ही  
जब तक न हो मन स्वच्छ-निर्मल, दिग्भ्रमित है मन वही

रंगीन जल है ’क्लेष’ मन का, ’काम भी जल पात्र का

परिशुद्ध जल से पात्र भरना कर्म हो जन मात्र का ||2||

 

जिससे सधे उद्विग्न मन वह ’संतुलन’ का ज्ञान है

फिर, सुख मिले या दुख मिले, हो शांत मन, कल्याण है  
जन साध ले मन ’संतुलन’ में, निष्ठ हो, शुभता रसे
मन-पात्र दूषित जलभरा तो हीनता, लघुता बसे   ||3||

 

भटकाव के  प्रारूप दो ही क्लिष्ट और अक्लिष्ट हैं
छूटे न यदि भटकन सहज ही, मानिये वे क्लिष्ट हैं 

जनहित परम हो लक्ष्य जिनका, चित्त से उत्कृष्ट हैं
जिनमें समर्पण तपस के प्रति, जन सभी वे शिष्ट हैं ||4||

प्रति पल परीक्षित आदमी है, साधना हरक्षण चले
यह ताप ही तप साधता है, दिव्य हो तन-मन खिले

उन्नत तपस से शुद्ध हो मन,   भक्ति है, उद्धार है
भव-मुक्ति है, आनन्द है, शुभ  प्रेम का संसार है   ||5||

*****************************

-- सौरभ

 

(ध्यातव्य : छंद की पंक्तियों के प्रयुक्त सभी कोमा वाक्यानुसार है नकि यति के लिहाज से. किन्तु, वाचन-क्रम में पंक्तियों में यति का आभास स्वयमेव हो जायेगा.)

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 6, 2011 at 9:15pm

आदरणीया मिहिनीजी, आपका सादर धन्यवाद कि आपने मेरे प्रयास को अनुमोदित किया.

Comment by Abhinav Arun on October 6, 2011 at 8:08pm

क्या , कौन और कैसा लक्ष्य हो इस जीवन का ?

राह दिखाती , इस जीवन की आपाधापी में विश्राम के अमूल्य पलों कि महत्ता बताती रचना .. जो आत्मावलोकन को प्रेरित करती है ..

आदरणीय श्री सौरभ जी लेखनी का हार्दिक नमन !!

Comment by mohinichordia on October 6, 2011 at 8:02pm

प्रति पल परीक्षित आदमी है ........प्रत्येक क्षण  कसौटी है जिंदगी की |बहुत अच्छा |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 6, 2011 at 3:47pm

भाई बाग़ीजी, आपको मेरा प्रयास सार्थक लगा इस हेतु आपका आभारी हूँ.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 6, 2011 at 12:02pm

छंद हरिगीतिका को लय के साथ पढ़ने में एक अलग ही अनुभव है, मैंने महसूस किया है कि जब मन अशांत हो तो गुनगुनाते हुए हरिगीतिका को पढ़िए, १००% लाभ ना मिला तो कहियेगा |

सौरभ भईया आपकी लेखनी को नमन, बहुत ही खुबसूरत हरिगीतिका की प्रस्तुति है, सरल प्रवाह, कथ्य उम्दा.. बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें |

ओ बी ओ पर छंद परिचय हेतु एक समूह बनाया गया है जिसे धीरे धीरे भारतीय छंद विधान के साथ समृद्ध किया जायेगा, भाई अम्बरीश जी ने पहला पोस्ट "दोहा" पर लगाया है | 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 6, 2011 at 9:54am

यह सही है भाई धर्मेंद्रजी, कि, छंद ’हरिगीतिका’ अपने आप में वैशिष्ट्य स्थान रखती है. इस छंद को मैं भाई अम्बरीषजी के सौजन्य से समझ पाया हूँ, जब मैंने उनके हाल में इसी छंद पर रचित रचना-समुच्चय पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी. मेरी समझ पर मेरे अनुज भाई नवीनजी ने सोत्साह प्रत्यंचा कसी है.   आपसभी सुधी मित्रों का सहयोग, प्रोत्साहन तथा अनुमोदन मेरी साहित्य-यात्रा में मार्ग-दर्शी शलाका बने.

कहना न होगा, भाईजी, हुए छंद प्रयास और इस कथ्य पर आपका अनुमोदन मेरे लिये सनद सदृश है. आभार.

 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 6, 2011 at 12:06am

हरिगीतिका छंद को साधना कठिन है क्योंकि यह है तो मात्रिक छंद परंतु लगभग वार्णिक सा हो जाता है, अपने विशिष्ट प्रवाह के कारण। आपने बखूबी निभाया है छंद भी, भाव भी। बधाई स्वीकार करें।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 5, 2011 at 7:42pm

भाई बृजभूषणजी, मेरी रचना की सार्थकता को आपने अनुमोदित किया है यह मेरे लिये अत्यंत संतोष की बात है. आप संभवतः नहीं मानेंगे, प्रस्तुत रचना पर आपकी सकारात्मक टिप्पणी ने मुझे आंतरिक प्रसन्नता से आप्लावित कर दिया है. आपसे इसीतरह की टिप्पणियों की मुझे अपेक्षा रहती है.. संयत, शुद्ध और सटीक.  आपका हार्दिक धन्यवाद.

आपको शायद याद हो बृजभूषणजी, इसी विषय के इर्द-गिर्द हमने आपस में टेलीफोन पर तेरह सितम्बर की शाम में चर्चा की थी. उसी चर्चा को इस रचना में आगे बढ़ता हुआ देखें -

उन्नत तपस से शुद्ध हो मन, भक्ति है, उद्धार है

भव-मुक्ति है, आनन्द है, शुभ प्रेम का संसार है ।.. .

 

धन्यवाद.

Comment by Brij bhushan choubey on October 5, 2011 at 5:03pm

आदरणीय सौरभ सर जी आपकी इस सुन्दर रचना को पढकर न सिर्फ मन  को एक असीम आनद की प्राप्ति होती है बल्कि हम इसके भावों को अपने मन और अन्तस्थ में उतार कर अपनी जिंदगी को स्वच्छ, सार्थक और सफल बना सकते है ....

यह सत्य निज अन्तःकरण का सत्त्व भासित ज्ञान है 

मन का कसा जाना कसौटी पर मनस-उत्थान है 

जो कुछ मिला है आज तक क्या है सुलभ बस होड़ से?

इस जिन्दगी की राह अद्भुत, प्रश्न हैं हर मोड़ से    ||1| ......

बिलकुल सही कहा है आपने हम आपनी जिंदगी को होड़ में शामिल करके नहीं बल्कि कर्म करके सफल बना सकते है । होड़ तो बस होड़ है |
बाकि आपकी सभी पंक्तियाँ जीवन को एक नया सात्विक जीवन जीने को उत्साहित करती है |
धन्यवाद ,इस इस प्रेरणा श्रोत   रचना को हम सब के सामने रखने के लिए |

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 5, 2011 at 9:02am

वीनस भाई, मेरे प्रयास को मिली आपकी संसुस्ति उत्साहजन्य है. कारण कि, इस छंद-प्रस्तुति का विषय आज की सामान्यतया प्रचलित लेखन परिपाटी के लिहाज से तनिक गूढ़ है. इस छंद और विषय-विशेष पर आपकी प्रतिक्रिया से, सच मानिये, मुझे आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता हुई है. बहुत-बहुत धन्यवाद.

दूसरे, मैंने प्रयुक्त छंद को मात्रिक रूप से पूरी तरह से साधने का प्रयास किया है. इस ओर सुधी दृष्टि की अपेक्षा है.

छंद का विषय मनस-प्रक्षालन तथा वैचारिक ’संतुलन’ से चित्त को आप्लावित करने का आख्यान है. आपने जिन पंक्तियों को विशेष रूप से इंगित किया है वे उस प्रक्रिया की विधि-प्रक्रिया तथा अनुमन्य परिणाम प्रस्तुति हैं. आपकी संवेदना को मेरा हार्दिक अभिनन्दन.

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