For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो नन्हा सा था,

थे पंख उसके छोटे, छोटी सी थी काया,

नन्ही सी उन आँखों में जैसे पूरा गगन समाया!

सोचती थी कैसे उड़ेगा....

छोटी छोटी प्यारी आँखों में उड़ने का था सपना,

पंख फैला सर्वत्र आकाश को बनाना था अपना,

हर कोशिश के बाद मगर फिसल-फिसल वो जाता!

सोचती थी कैसे उड़ेगा....

इक दिन फिर नन्हे-नन्हे से पर उसके थे खुले,

थी शक्ति क्षीण मगर बुलंद थे होंसले,

पूरी हिम्मत समेट कर घोसले से वो कूदा!

सोचती थी कैसे उड़ेगा....

पंख फैला उन्मुक्त आकाश में दूर कहीं उड़ गया,

पता नहीं कब उसका सपना मेरा अपना बन गया,

देख कर मुझको उन आँखों ने कहा लो मै उड़ा!

सोचती थी कैसे उड़ेगा....

पंख उसके चूम रहे हैं आज स्वछन्द आकाश को,

देता हैं सन्देश यही जीवन में मत निराश हो,

अपनी नियति को समझो, प्रयत्न करो, मत हिम्मत हारो

जैसे उड़ना उसकी नियति थी, और वो उड़ गया!

सोचती थी कैसे उड़ेगा....

Views: 345

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 23, 2011 at 4:27pm

अपनी नियति को समझो, प्रयत्न करो, मत हिम्मत हारो

जैसे उड़ना उसकी नियति थी, और वो उड़ गया!

 

वाह वाह, कविता के अन्दर छुपे निहितार्थ को समझाने का प्रयास बहुत ही खूबसूरती से लेखिका ने किया है और सफल भी है, कोई काम असंभव नहीं है जरुरत प्रयास करने का है |

बहुत बहुत बधाई वसुधा निगम जी,

Comment by Vasudha Nigam on July 23, 2011 at 3:55pm
thank you sir jee... aap bahut hi khoobsurti se kavita ke marm ko samajhte hain bahut aabhaar aapka itne sundar shabdo k liye.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 23, 2011 at 3:45pm

और, उसकी रोमिल-पंखी उड़ान में अपने आस-पास परम्पराओं से बन आये अभेद्य-सरीखे पिंजरे को तीली-तीली टूटते महसूस करना.. गोया, उस नन्हें परिंदे ने नहीं हमी ने उस परवाज़ को जीया है. ..!!

वसुधाजी, बहुत खूबसूरती से आपने अपनी रचना में   ’काश..’ को स्वर देने का प्रयास किया है. जिस सलीके से आपने उन्मुक्तता को आवाज़ दी है, उम्मीद जगाता है. प्रयासरत रहें.

शुभकामनाएँ.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service