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2122 -1122-1122-22

याद तेरी को ऐसे दिल में लगा रक्खा है ।

ढूंढ  पाये  तेरा तो  जेब    पता रक्खा है ।1

 

रात  सो जाये हमें नींद कहाँ आती अब ,

साथ रातों यही  रिश्ता जो  बना रक्खा है ।2

 

क्यूँ बता दी कोई अपनी  ये कहानी उसको ,

बन  रहे   फूल  जो क्यूँ  शूल बता  रक्खा है।3

 

कल मिरा आज बिगाना वो  किसी कल  होगा

किस लिए यार  यूँ ही खुद को जला रक्खा है ।4

 

था कभी खोजा जिसे ऊँचे पहाड़ों जा कर ,

नेक बंदे ने ख़ुदा दिल में छुपा रक्खा है ।5

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

 

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Comment by Samar kabeer on November 29, 2020 at 8:26pm

जनाब मोहन बेगोवाल जी आदाब,ग़ज़ल अभी समय चाहती है, शिल्प और व्याकरण पर ध्यान देने की ज़रूरत है, प्रयासरत रहें ।

कृपया ध्यान दे...

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