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जहाँ की नज़र में वो शैतान हैं..( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

122 122 122 12

जहाँ की नज़र में वो शैतान हैं
समझते हैं हम वो भी इंसान हैं

न हिंदू न यारो मुसलमान हैं
यहाँ सबसे पहले हम इंसान हैं

खु़दा कितने हैं ,कितने भगवान हैं
यही सोचकर लोग हैरान हैं

नहीं उनको हमसे महब्बत अगर
हमारे लिये क्योंं परेशान हैं

रिहा कर मुझे या तू क़ैदी बना

तेरे हैं क़फ़स तेरे ज़िंदान हैं

*मौलिक एवं अप्रकाशित.

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 11, 2020 at 7:47pm

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

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