For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तू ही नहीं मैं भी तो हूँ (ग़ज़ल)

रमल मुसम्मन महज़ूफ़

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2 1 2 2 / 2 1 2 2 / 2 1 2 2 / 2 1 2

सारी दुनिया से ख़फ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ
हादसों का सिलसिला तू ही नहीं मैं भी तो हूँ

दौड़ता जाता है ख़ामोशी से बिन पूछे सुने
वक़्त से दहशत-ज़दा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ

ज़िन्दगी है लम्हा लम्हा जंग अपने-आप से
अपने अंदर कर्बला तू ही नहीं मैं भी तो हूँ

दिल के अंदर गूंजती हैं चीख़ती ख़ामोशियाँ
एक साज़-ए-बे-सदा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ

क्या हुआ तकमील तेरी और न मेरी हो सकी
ख़ल्क़ का अहद-ए-वफ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ

क्या ख़बर आये कहाँ से और जाएँगे किधर
रस्म-ए-दुनिया की ख़ता तू ही नहीं मैं भी तो हूँ

क्या अजब वीरानियाँ हैं रूह को घेरे हुए
इन ख़लाओं की ख़ला तू ही नहीं मैं भी तो हूँ

तेरे मेरे दरमियाँ जो भी हुआ इक भूल थी
बज़्म-ए-मक़तल में नया तू ही नहीं मैं भी तो हूँ

ढो रहे हैं अपनी अपनी ख़्वाहिशों की लाश हम
अपने ख़्वाबों की चिता तू ही नहीं मैं भी तो हूँ

हम मुकम्मल जल न पाए और न बुझ पाए कभी
इक चिराग़ाँ अध-बुझा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ

जो हक़ीक़त है वो ग़ैब-ए-ग़ैब हो ये क्या ख़बर
असलियत से यूँ जुदा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ

या तो ले जाऊँगा सब कुछ या नहीं कुछ चाहिए
अपनी ज़िद पर यूँ अड़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ

ये नहीं मालूम 'शाहिद' क्या ख़ता हम से हुई
बेगुनाही की सज़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 580

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on February 23, 2020 at 3:31pm

आदरणीय समर कबीर साहब, आपकी इस्लाह और मार्गदर्शन के लिए तह-ए-दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँ।

Comment by Samar kabeer on February 23, 2020 at 3:02pm

सबसे पहली बात ये ध्यान में रखें कि शाइर को अपने अशआर की तशरीह कभी नहीं करना चाहिए,क्योंकि पाठक अपने दिमाग़ से ग़ज़ल पढ़ता और समझता है ।

'सारी दुनिया से ख़फ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ
हादसों का सिलसिला तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'

इस मतले को आपके बताये भाव के अनुसार यूँ किया जा सकता है:-

'सारी दुनिया से ख़फ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ

हादिसों से आशना तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'


'क्या हुआ तकमील तेरी और न मेरी हो सकी
ख़ल्क़ का अहद-ए-वफ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'

इस शैर को हम ऐसे ही रहने देते हैं ।


'क्या ख़बर आये कहाँ से और जाएँगे किधर
रस्म-ए-दुनिया की ख़ता तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'

इस शैर को भी हम ऐसे ही रहने देते हैं ।

'जो हक़ीक़त है वो ग़ैब-ए-ग़ैब हो ये क्या ख़बर
असलियत से यूँ जुदा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'

इस मिसरे में 'ग़ैब-ए-ग़ैब' का अर्थ होगा ग़ैब का ग़ैब,जो अर्थहीन है,ऊला यूँ कर सकते हैं:-

'जो हक़ीक़त है वो सारी ग़ैब के पर्दे में है'

बाक़ी शुभ शुभ ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on February 23, 2020 at 2:24pm

आदरणीय समर कबीर साहब, सादर प्रणाम। ग़ज़ल को अपना कीमती वक़्त देने के लिए और अपनी अमूल्य राय देने के लिए आपका बेहद शुक्रगुज़ार हूँ। सर, आपके कहने पर मैंने दोबारा अशआ'र को ध्यान से पढ़ा है।

//सारी दुनिया से ख़फ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ
हादसों का सिलसिला तू ही नहीं मैं भी तो हूँ//
इसमें मेरा भाव ये है कि तू भी मेरे ही जैसा है, हम दोनों सब से नाराज़ हैं क्यूंकि क़दम क़दम पर हादिसात के शिकार होते चले आये हैं, और वो हासिल नहीं कर पाए जो चाहा...

//क्या हुआ तकमील तेरी और न मेरी हो सकी
ख़ल्क़ का अहद-ए-वफ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ//
सर, इसमें 'क्या हुआ' का भाव है 'कोई बात नहीं, फ़िक्र ना कर' – इस सृष्टि का वादा है तुझसे, मुझसे और सभी से कि उनको fulfillment मिलेगी, और वो अपनी full potential को achieve करेंगे, अन्यथा बनाने वाले ने बनाया ही न होता, इसलिए दिल में उम्मीद रख...

//क्या ख़बर आये कहाँ से और जाएँगे किधर
रस्म-ए-दुनिया की ख़ता तू ही नहीं मैं भी तो हूँ//
सर, यहाँ रस्म-ए-दुनिया से मेरा इशारा विवाह करके नई रूहों को दुनिया में लाने की तरफ़ है – हम लोग बच्चे पैदा करते हैं, ये जानते हुए भी कि जीवन का उद्देश्य क्या है हमें नहीं पता, और जीवन के बाद आगे क्या है, वो भी हम नहीं जानते, बस एक रस्म बन गई है...

//इस मिसरे में 'मक़तल' को बज़्म कहना उचित नहीं,मिसरा यूँ कर सकते हैं:-
'यार मक़तल में नया तू ही नहीं मैं भी तो हूँ//
जी सर, बहुत बेहतर है...

//जो हक़ीक़त है वो ग़ैब-ए-ग़ैब हो ये क्या ख़बर'
इस मिसरे में 'ग़ैब-ए-ग़ैब' की तरकीब उचित नहीं//
सर, इस शेर को मैंने थोड़ा तब्दील कर लिया है:
    जो नुमायाँ है वो ग़ैब-ए-ग़ैब हो ये क्या ख़बर
    असलियत से यूँ जुदा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ
भाव ये है कि जो हमें दिखता है और जिसे हम reality समझते हैं, क्या पता वो दर-हक़ीक़त ऐसी छुपी हुई बात हो जो हमें कभी समझ ही नहीं आ सकती, क्या पता वो 'mystery of mysteries' हो...

//या तो ले जाऊँगा सब कुछ या नहीं कुछ चाहिए
अपनी ज़िद पर यूँ अड़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ//
सर, इस शेर में भाव ये है कि हम सभी ज़िद्द पर अड़े होते हैं कि जीवन में सभी कुछ जो हासिल करना चाहते हैं, वो मिले, और हम compromise करने के लिए तैयार नहीं होते...

आदरणीय समर कबीर जी, अपनी बात कहने के लिए अंग्रेज़ी के अलफ़ाज़ इस्तेमाल करने के लिए माज़रत चाहता हूँ – दरअस्ल अंग्रेज़ी का टीचर हूँ और हिंदी/उर्दू दोनों कमज़ोर हैं। आपकी टिप्पणी से मुझे ये बात तो स्पष्ट हो गई है कि अगर मुझे इन अशआ'र के बारे में इतना कुछ समझाना पड़ रहा है, तो इसका मतलब है कि कुछ ना कुछ कमी रह गई ग़ज़ल की तख़लीक़ में, वैसे बड़ा मन लगा कर लिखा था इसको...

आप ये सन्देश पढ़ लें तो आपको फ़ोन करने की जुर्रत करने का हौसला जुटाता हूँ। सादर...

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 23, 2020 at 12:33pm

आ. भाई समर कबीर जी, सादर अभिवादन । आपके मार्गदर्शन में बहुतकुछ नया सीखने समझने को मिलता है । इस ज्ञानवर्धन के लिए आभार..

Comment by Samar kabeer on February 23, 2020 at 12:07pm

जनाब रवि भसीन 'शाहिद' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

'सारी दुनिया से ख़फ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ
हादसों का सिलसिला तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'

मतले के दोनों मिसरों में रब्त पैदा नहीं हो सका,देखियेगा ।

'क्या हुआ तकमील तेरी और न मेरी हो सकी
ख़ल्क़ का अहद-ए-वफ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं,देखियेगा ।

'क्या ख़बर आये कहाँ से और जाएँगे किधर
रस्म-ए-दुनिया की ख़ता तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,देखियेगा ।

'बज़्म-ए-मक़तल में नया तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'

इस मिसरे में 'मक़तल' को बज़्म कहना उचित नहीं,मिसरा यूँ कर सकते हैं:-

'यार मक़तल में नया तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'

'जो हक़ीक़त है वो ग़ैब-ए-ग़ैब हो ये क्या ख़बर'

इस मिसरे में 'ग़ैब-ए-ग़ैब' की तरकीब उचित नहीं ।

'या तो ले जाऊँगा सब कुछ या नहीं कुछ चाहिए
अपनी ज़िद पर यूँ अड़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं,ऊला बदलने का प्रयास करें ।

मेरा मोबाइल नम्बर नोट कर लें,समय मिलते ही बात कर लें 09753845522

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on February 20, 2020 at 11:37am

आदरणीय लक्ष्मण भाई, ग़ज़ल पढ़ने के लिए और हौसला बढ़ाने के लिए बहुत शुक्रिया। इस मंच पर मैं आपकी सक्रियता, सकारात्मक प्रतिक्रिया, और सभी को प्रोत्साहित करने के लिए हृदयतल से सराहना करता हूँ। सलामत रहें, और ख़ूब अच्छा लिखते रहें।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 20, 2020 at 10:54am

आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
14 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
15 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service