For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(दहेज़ के लिए पत्नी को जलाने,हत्या करने जैसी घटनाएँ आज भी हमारे समाज में घट रही हैं. हम कैसे मान लें हम पहले से अधिक शिक्षित और सभ्य हो चुके हैं. मानसरोवर --4 इसी अमानुषिक कृत्य पर आधारित है.

OBO के सभी मित्रों से अनुरोध है कि इस अमानवीय घटना की कड़ी भर्त्सना करें.)
मानसरोवर -- 4

 

दहेज़ -तिलक का यह रिवाज़, मानवता में है एक दराज.
मानव का है यह नहीं कर्म, मानवता का यह नहीं धर्म.
             फिर कौन बनाया यह रिवाज़?
             फिर किसका है यह घृणित काज?
कुछ लोभी इंसानों ने, मुट्ठी भर बेईमानों ने.
हम सब को गुमराह किया. संस्कृति -धर्म को स्याह किया.
             ये ही समाज के शोषक हैं.
             दहेज़ -नाग के पोषक हैं.
इनको दण्डित करना होगा, इनको खंडित करना होगा.
अन्यथा शकुनियों का गिरोह, योजनाबद्ध अधमों का द्रोह.
             मानव -परिधान भिंगोयेगा.
             मानवता -डोंगी डुबोयेगा.
जहां इज्ज़त का लगता बाज़ार,शादी का होता है व्यापार.
वह कोठी भी कोठा ही है, वह फूल नहीं काँटा ही है.
             जो सबका रुधिर बहाता है.
             जो सबका बसन चबाता है.
सुत का जो आज विक्रेता है, वह कल पर सुत का क्रेता है.
कैसा अजीब है यह व्यापार, कितना पतित यह रोज़गार.
             माना कि ख़ुशी यह अपनी है.
             पर देख, लाश भी अपनी है.
शादी रिश्तों में बंधना है, शादी दो दिल का मिलना है.
शादी तो प्यार का सागर है, स्नेह -सुधा का गागर है.
             रिश्ते बाज़ार में बिकते हैं?
             क्या प्रेम हाट में मिलते हैं?
दुनिया का सजा हुआ आँगन, भू, भूधर,ब्योम,वात -कानन.
धरती की यह प्यारी सूरत, नैनों के प्रिय मानव -मुरति.
              नर -नारी के ही दम से है.
              नर -नारी के ही श्रम से है.
फिर नारी क्यों लाचार यहाँ? फिर नारी क्यों असहाय यहाँ?
वह भी है पुरुषों के समान, फिर क्यों रिवाज़ यह असमान?
              नारी होना कोई पाप नहीं.
              नारी होना कोई शाप नहीं.
सोचो! यदि ऐसा भी होता, नारी का पता नहीं होता.
तो कौन बहन - माता होती? कौन प्रिया - कान्ता होती?
              क्या पुरुषों का होता समाज?
              जिसका दहेज़ ही है रिवाज़?
माँ बन जो ममता दान किया, बन बहन कवच का काम किया.
प्रेयसी बन प्यार लुटाया जो, पत्नी बन सेज सजाया जो.

               वह रोती और बिलखती है.

              हंसी देकर, आप सिसकती है.

ओह! कितना पतित इंसान हुआ, कितना बेईमान ईमान हुआ.

चांदी - सोने के ढेरों में, रुपये - पैसों के घेरों में.

             माँ और बहन को छिपा दिया.

             पत्नी - प्रेयसी को लुटा दिया.

युवजन को समय पुकार रहा, मत भूल कि कल तेरा है.

पर दहेज़ को ख़तम करो, यह प्रबल शत्रु तेरा है.

युवक -युवती हैं समान, फिर क्यों दहेज़ का घेरा है.

प्रिय,तुम्हारे कर कमलों में मानसरोवर मेरा है.

  • गीतकार - सतीश मापतपुरी

Views: 380

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 26, 2011 at 2:14pm

आपके विचारों का अनुमोदन करते हुए आपकी संवेदना को धन्यवाद देता हूँ.

Comment by Rash Bihari Ravi on July 26, 2011 at 11:41am

युवजन को समय पुकार रहा, मत भूल कि कल तेरा है.

पर दहेज़ को ख़तम करो, यह प्रबल शत्रु तेरा है.

युवक -युवती हैं समान, फिर क्यों दहेज़ का घेरा है.

प्रिय,तुम्हारे कर कमलों में मानसरोवर मेरा है.

aap ki bato ko samarthan karte huye ham aapna bhi birodh darj karate hain

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service