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ग़ज़ल - वज़्न -2122"2122"22/112

वज़्न -2122"2122"22/112

हर सहारा बे-सहारा निकला
जो मिला हमको बिचारा निकला (१)

हमसफर मेरा ख़ुदारा निकला
कौन कहता है नकारा निकला (२)

अब किसे अपना ख़ुदा समझें हम
ये ख़ुदा भी तो तुम्हारा निकला (३)

सज गयी है मौत की ये महफ़िल
दम जो निकला तो हमारा निकला (४)

कब हुई है इख़्तियारी जाँ पर
ज़ीस्त का हर पल मदारा निकला (५)

अश्क़ आँखों से बहाते हो क्यों
जाने वाला तो हमारा निकला (६)

हैं सितारे आसमाँ में लाखों
पर हमारा वो न तारा निकला (७)

आह निकली दर्द के मारे बस
और जो निकला क़ज़ारा निकला (८)

इन्तिज़ारी-ए-कज़ा करते रहें
मौत का मंज़र हरारा निकला (९)

ये न कहना हक मेरा है तुम पर
हर तरफ उसका इज़ारा निकला (१०)

दफ़्न कर आये तेरी यादों को
क्यों ये खंज़र यूँ दुबारा निकाला (११)

मौलिक और अप्रकाशित

#शब्दार्थ
ख़ुदारा-घमंडी, इख़्तियारी - अधिकार, जाँ /ज़ीस्त-जिंदगी, मदारा-समझौता, क़ज़ारा-अचानक, हरारा-धोखा, इज़ारा-एकाधिकार

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