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गज़ल (12122-12122)

हमें मुहब्बत जतानी होगी
ये दिल की लब तक तो लानी होगी॥
दीवार चुप की गिरानी होगी
कि बात कुछ तो बनानी होगी॥
जो फेंक डाली है तूने बोतल
तो आँख से अब पिलानी होगी॥
शराब भी तो है इश्क जैसी
चढ़ेगी जितनी पुरानी होगी॥
जो चाहता है धुआँ न उठ्ठे
तो आग ज़्यादा बढ़ानी होगी॥
तू हँस के चाहे निभा ले रो के
तुझे मुहब्बत निभानी होगी॥
जुबान चुप है,है आँख पत्थर
ज़ुरूर दिल में विरानी होगी॥
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Gurpreet Singh jammu on November 13, 2016 at 8:26pm
जी समर कबीर जी.गज़ल की कमियां बताने के लिए बहुत शुक्रिया. आप के सुझावों के अनुसार गज़ल में तबदीली कर दी है.
Comment by Samar kabeer on November 13, 2016 at 5:11pm
जनाब गुरप्रीत सिंह जी आदाब,बढ़िया ग़ज़ल कही आपने,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
चौथे शैर में'चड़ेगी'को "चढ़ेगी" कर लें,इसी तरह सातवें शैर में'पथ्थर' को "पत्थर" कर लें ।
आख़री शैर में 'हमाम' ग़लत है,सही शब्द है "हम्माम" देखियेगा ।

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