For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल (सबसे रहे ये ऊँची मन में हमारी हिन्दी)

भाषा बड़ी है प्यारी जग में अनोखी हिन्दी,
चन्दा के जैसे सोहे नभ में निराली हिन्दी।

पहचान हमको देती सबसे अलग ये जग में,
मीठी जगत में सबसे रस की पिटारी हिन्दी।

हर श्वास में ये बसती हर आह से ये निकले,
बन के लहू ये बहती रग में ये प्यारी हिन्दी।

इस देश में है भाषा मजहब अनेकों प्रचलित,
धुन एकता की डाले सब में सुहानी हिन्दी।

शोभा हमारी इससे करते 'नमन' हम इसको,
सबसे रहे ये ऊँची मन में हमारी हिन्दी।


आज हिन्दी दिवस पर
22 122 22 // 22 122 22 बहर में

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 2350

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 19, 2017 at 5:29pm
आ नीरज जी,
अरकान दूसरे हों या तीसरे
सारे जहाँ से अच्छा की तकतीअ कर के देख लें।
सा 2 रे 2 ज 1 हाँ 2/ से 1 अच 2 छा 2// हिन 2 दो 2 स 1 ता 2/ ह 1 मा 2 रा 2 यानी 2212, 122,,, 2212, 122 अब इन्हें किसी भी कॉम्बिनेशन में लिखें, धुन यही रहेगी।
वैसे ग़ज़ल की कक्षा में तकतीअ पर चैप्टर है।
सादर
Comment by Niraj Kumar on September 19, 2017 at 5:28pm

आदरणीय रामबली गुप्ता जी,

आपकी बात सही है कि रचना पूरी तरह लय में है. लेकिन किसी ग़ज़ल की अरूजी साख्त  पर चर्चा  में  कोई बुराई नहीं है. इससे फायदा ही होता है. वैसे मै इस ग़ज़ल पर जनाब समर कबीर साहब की राय से सहमत हूँ.

सादर  

Comment by रामबली गुप्ता on September 19, 2017 at 5:02pm
भाई नीरज जी जब रचना पूरी तरह लय में है तो अरकान के पीछे क्यों पड़े हैं। क्या यह काफी नही कि रचना लयबद्ध और भावपूर्ण तथा कथ्य सुसंगत हैं?
Comment by Niraj Kumar on September 19, 2017 at 4:53pm

आदरणीय निलेश जी.

\\आप ने अरकान क्या ग़लत लिख दिए..लोग आपको  बेबहर साबित करने पर तुल गये.

आप अरकान 
२२१२/१२२// २२१२/१२२    कर लें\\

ये अरकान भी गलत है. मेरी जानकारी में ऐसी कोई बह्र मौजूद नहीं है जिसके अरकानों का क्रम ऐसा हो.

'सारे से जहाँ से अच्छा' के अरकान दूसरे हैं. 

सादर 

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 18, 2017 at 10:29pm


.आद0 बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी, बहुत अच्छी रचना के लिए हार्दिक बधाई। सादर

Comment by Niraj Kumar on September 18, 2017 at 9:43pm

जनाब समर कबीर साहब, आदाब,

कोशिश करूगा. शुक्रिया.  

Comment by Samar kabeer on September 18, 2017 at 9:29pm
आप मीर को पढ़ लें और ख़ुद तलाश करें,आपके पास बहुत वक़्त है, कहते हैं न 'अक़्लमंद को इशारा काफ़ी होता है' ।
Comment by Niraj Kumar on September 18, 2017 at 9:20pm

जनाब समर कबीर साहब, आदाब,

आपके द्वारा दी गयी जानकारी मेरे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है. और अरूज़ पर सोचने के लिए एक नयी दिशा देने वाली है. मीर द्वारा किये गए इस तरह के प्रयोगों पर कुछ और रोशनी डालें और कुछ उदाहरण दे तो मेरे लिए बहुत बड़ी मदद होगी.

सादर  

Comment by रामबली गुप्ता on September 18, 2017 at 7:43pm
धन्यवाद भाई नीलेश जी एवं समर भाई साहब। आप लोगों के सपष्टीकरण से जानकारी में काफी इज़ाफ़ा हुआ है।
Comment by Samar kabeer on September 18, 2017 at 3:39pm
बहरों के खेल निराले मेरे भय्या'

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीया प्राची दीदी जी, आपको नज़्म पसंद आई, जानकर खुशी हुई। इस प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में हैं। "
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आभार "
13 hours ago

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय, यह द्वितीय प्रस्तुति भी बहुत अच्छी लगी, बधाई आपको ।"
13 hours ago

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"वाह आदरणीय वाह, पर्यावरण पर केंद्रित बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई ।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर आभार।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन कुंडलियाँ छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई तिलक राज जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह से लेखन को पूर्णता मिली। हार्दिक आभार।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, हार्दिक धन्यवाद।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई गणेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
14 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service