गा ल गा गा (ललगागा) / लल गागा/ ललगागा / गा गा (ललगा) 
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 ये तमाशा तो मेरे ज़ह’न के अन्दर निकला,
 मैं बशर मैं ही ख़ुदा मैं ही पयम्बर निकला. 
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 ये ज़मीं चाँद सितारे ये ख़ला.... सारा जहान,  
 वुसअत-ए-फ़िक्र से मेरी ज़रा कमतर निकला.
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 संग-दिल होता जो मैं आप भी कुछ पा जाते, 
 क्या मेरी राख़ से पिघला हुआ पत्थर निकला?  
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 सोचता था कि मेरे अश्क हैं क्यूँ कर नमकीन, 
 ज़ह’न की थाह में गुम-गश्ता समुन्दर निकला.
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 धडकनों में हुई महसूस कोई तेज़ चुभन, 
 दिल टटोला तो किसी याद का नश्तर निकला.
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 “नूर जी” ज़ह’न की आज़ादी प इतराते रहे, 
 पर अना शाह रही, ज़ह’न तो नौकर निकला.
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 निलेश "नूर"
 मौलिक/ अप्रकाशित 
 
Comment
शुक्रिया आ. अनुराग जी ..
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भी तब  सही होता अगर कोई और भी रेफरेंस होता ...
सादर 
शुक्रिया आ. समर सर
क्या यूँ ठीक रहेगा...
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ये ज़मीं चाँद सितारों से बना तेरा  जहान 
वुसअत-ए-फ़िक्र से मेरी ज़रा कमतर निकला.
शुक्रिया आ. समर सर...
साहित्य का छात्र न होने के कारण इतनी बारीकियाँ अक्सर नहीं जान पाता हूँ ...
आप के बताए अनुसार सरा दुरुस्त कर पेश करता हूँ ..
सादर 
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