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आइना सब को दिखाते हैं कभी खुद देखिये

२१२२  ११२२   ११२२   २१२  

आइना सब को दिखाते हैं कभी खुद देखिये 

क्यूँ लगी ये आग हरसू आप खुद ही सोचिये 

हुक्मरानों ने खता की बच्चों से बचपन छिना 

अब्बू ना लौटेंगे चाहे लाख आंसू पोंछिये 

अम्मी के हाथों के सेवइ अम्मा के हाथों की खीर 

एक जैसा ही सुकू देती है खाकर देखिये 

दिल  हमीदों का न तोड़ो गर है कोई सिरफिरा 

मौत हिन्दी की हुई मत हिन्दू मुस्लिम बोलिये 

जो बचाने में लगा है इस वतन की आबरू 

हम बिरोधी उसके हैं या नीतियों के सोचिये 

जिस सपोले को पिलाकर दूध जहरीला किया 

है उठाये फन खड़ा तो आँख यूं मत फेरिये 

हम है हिन्दू वो मुस्लिम ये पता सदियों से था 

पर हमें दुश्मन बताकर रोटियाँ मन सेंकिए 

जिस वतन से आप खुद है आपकी ये आबरू 

क्या यही सीखा है पीकर दूध माँ को बेंचिए 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 13, 2016 at 4:16pm

आदरणीय सुशील जी रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर 

Comment by Sushil Sarna on June 13, 2016 at 2:32pm

आइना सब को दिखाते हैं कभी खुद देखिये
क्यूँ लगी ये आग हरसू आप खुद ही सोचिये

वाह बहुत खूब आदरणीय। .... दिलकश अहसासों को आपने बड़ी ख़ूबसूरती से अपनी ग़ज़ल में अंजाम दिया है। हार्दिक बधाई सर।

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