For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सम्प्रदायिक दंगा...

चौराहों पर भीड़ अकड़ कर
भड़ास निकालती
दूकानें घबराकर छिप जाते बन्द डिब्बों में
जनानी खिड़कियां दुबक जातीं
देर सुबह तक.....शायद अनि-िश्चत काल के लिए
बिना पंख की हवाएं बिखेरतीं, सौरभ-अफवाहें
अर्ध्द खुली मर्द खिड़कियां, अवाक!
शहर की गली, सड़क सब सॉय-सॉय
...फुफकारते काले नाग
शोक में,  सब्जियां - फल सब दॉए-बॉए
नालियों में अपनी सूरतें देखतीं
सड़कों के मध्य चप्पलें दहाड़े मार कर रोती
जूते फटेहाल गुमसुम......मुॅह बॉए...स्तब्ध !
अचानक ही सीटी बजती !
पुलिस-पुलिस....स्वर गॅूजते
भद-भदा कर दौड़ पड़तीं फटी बिवाईयां   
घर-किवाड़ाें की टीसतीं आहें
मन्दिर-मस्जिदों की मीनारों से गूंजते- डर, खौंफ और आशंका
सीटी पल-पल में कौंध कर चुप हो जाती....
पर, धू-धू कर जलते रहते, घास-पूस के छप्पर

और आवारा टायर,
दिन ढलने के साथ ही बुझ जाते
रोजी, रश्मि, रोशन और रजिया के दिल
अॅधेरों में ढ़ूढ़तीं अपने बच्चों के हाथ
दहशत में कुछ नहीं सूझता
अस्पतालों की राह अतिदुर्गम, सवारियां छूमंतर हो गयीं
स्कूल - रेल सब सूने - सूने
समाचार पत्रों के मुॅह काले, आँखें लाल, कर्मों के कर लुंज-पुंज
दर्पण में साफ झलकता......जीवन का यथार्थ......भीभत्स !
सॉकल, बेलन, तालें विवशता मे बिखर गए
अस्मतें लुटी, बुझे कुल दीपक
अस्त-व्यस्त चिथड़ाें में लिपटी.... पर्यावरण
अलबेली बस्तियॉ, तड़फ उठीं
श्वॉसें, भेड़ाें सी.....बिटिया, पानी...
शुष्क कूप में रिश्ते सिसकें
तीव्र प्रगति के छिछले नाले,

उफना कर सब सिन्धु हो गए
लहरें हिन्सा - प्रतिहिंसा की
मानवता, पाषाण खण्ड...उन्मादी रेती... किरकिर 

लीपा-पोती न्याय व्यवस्था
रखती सुर्खी, लाली, बि-िन्दया ....काजल भी
सम्प्रदायिक हिंसा नित होती
राजनीति से मालामाल
जन गण मन की दलित बस्तियॉ .
बुझी राख में नित्य ढॅूढ़तीं
आस्था के फूल......

गंगा में विसर्जन हेतु.।

के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित

Views: 752

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by maharshi tripathi on June 18, 2015 at 7:24pm

आ.  भाई Kewal Prasad जी ,,आपकी रचना सचमुच आग लगाने वाली है ,,बधाई आपको | 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 18, 2015 at 6:50pm

जन गण मन की दलित बस्तियॉ .
बुझी राख में नित्य ढॅूढ़तीं
आस्था के फूल......

गंगा में विसर्जन हेतु----------------- केवल जी  आजकल आप आग लगा रहे है . सादर .

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 18, 2015 at 3:50pm

आस्थाएं यूहीं विसर्जित हो जातीं हैं,
अज्ञानता का मोल चुका जाती हैं।
बहुत खूब लिखा है, आदरणीय केवल प्रसाद जी, बहुत बहुत बधाई,सादर। 

Comment by Samar kabeer on June 18, 2015 at 3:11pm
जनाब केवल प्रसाद जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
15 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
16 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service