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बला-ए-इश्क़ ‘’जान गोरखपुरी’’

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२

कुम्हलाए हम तो जैसे सजर से पात झड़ जायें

यु दिल वीरां कि बिन तेरे चमन कोई उजड़ जायें

मिरी आव़ाज में है अब चहक उसके आ जाने की
सितारों आ गले लूँ लगा कि हम तुम अब बिछड़ जायें

कि बरसों बाद मिलके आज छोड़ो शर्म एहतियात
लबों से कह यु दो के अब लबों से आ के लड़ जायें

न मारे मौत ना जींस्त उबारे या ख़ुदा खैराँ
बला-ए-इश्क़ पीछे जिस किसी के हाय पड़ जायें

बना डाला ग़मों के साहिलों ने ‘’जान’’ को दरिया
रस्ता पर्वत दिए जाये अगर हम राह अड़ जायें

‘’मौलिक व् अप्रकाशित’’

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Comment

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Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 9, 2015 at 11:06pm

हौसलाफजाई के लिए तहेदिल से शुक्रिया गुमनाम भाई!! मेरे समझ से उच्चारण में 'कु'+ 'म्ह'+ 'ला' + 'ए' १२२

२ आएगा, कुम् +हलाए नही... इसी प्रकार मुझ पर अपना स्नेह बनाये रक्खें!! 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 9, 2015 at 10:00pm

भाई कृष्ण मिश्रा जी , सुन्दर रचना है 

बना डाला ग़मों के साहिलों ने ‘’जान’’ को दरिया 
रस्ता पर्वत दिए जाये अगर हम राह अड़ जायें....बहुत खूब ,बधाई आपको !

Comment by gumnaam pithoragarhi on March 9, 2015 at 9:54pm

कुम्हलाए 2122 ,,,,,,,,,,,,,,,,, शायद इसकी तक्तीअ ऐसी हो ......
ग़ज़ल अच्छी कही है बधाई

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 9, 2015 at 6:11pm

शुक्रिया आ० shyam mathpal जी!!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 9, 2015 at 6:10pm

 बहुत बहुत शुक्रिया महर्षि भाई!!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 9, 2015 at 6:08pm

हौसलाफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया सोमेश भाई!!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 9, 2015 at 6:04pm

आ० डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आभार! त्रुटियाँ सुधरने में प्रयासरत हूँ!!इसी प्रकार अपना स्नेह बनाये रक्खें!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 9, 2015 at 5:58pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी बहुत बहुत आभार! प्रयास की सराहना के लिए! कुछ जगहों पे मात्र गिरा कर संतुलन बनने का प्रयास किया है!

और कुछ स्थानों पर शब्दों का मोह नही छोड़ पाया! जैसे एहतियात में 'त' बेबहर हो गया है! और ''रस्ता'' का वजन १'२ न होकर २'२ होगा !! एहतियात और रस्ता की जगह अन्य किसी शब्द के प्रयोग में लेने पर शेर की खूबसूरती कम होती दिखती है! एहतियात को एहतियाँ कर दूँ?क्या ये सही अर्थ देगा?अन्य त्रुटियों पर भी मार्गदर्शन का आकांछी हूँ!!आ० मार्गदर्शन करें!!

Comment by maharshi tripathi on March 9, 2015 at 5:47pm

आपकी गजल काफी सुन्दर है आपको ढेरों बधाई आ.बड़े भाई कृष्णा मिश्रा जी |

Comment by Shyam Mathpal on March 9, 2015 at 4:35pm

Aadarniya,

Mishra Ji badhai.

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