For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कांच की दीवार :नीरज कुमार नीर

तुम्हारे और मेरे बीच है
कांच की एक मोटी दीवार
जो कभी कभी अदृश्य प्रतीत होती है
और पैदा करती है विभ्रम
तुम्हारे मेरे पास होने का

मैं कह जाता हूँ अपनी बात
तुम्हें सुनाने की उम्मीद में
तुम्हारे शब्दों का खुद से ही
कुछ अर्थ लगा लेता हूँ.

क्या तुम समझ पाती होगी
मैं जो कहता हूँ
क्या मैं सही अर्थ लगाता हूँ
जो तुम कहती हो ..

कांच की इस दीवार पर
डाल दिए हैं कुछ रंगीन छीटें
ताकि विभ्रम की स्थिति में
मुझे सत्य बता सकें .

कांच के उस पार से
तुम्हे देखना अच्छा लगता है
अच्छा लगता है तुम्हारी
अनसुनी बातों का
खुद के हिसाब से अर्थ लगाना ..

नीरज कुमार नीर 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 753

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by parul 'pankhuri' on July 7, 2014 at 9:56am

 सुन्दर  एवं सार्थक रचना  नीरज जी कम शब्दों में बहुत कुछ कहती प्रतीत होती हुई !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 3:11am

परस्पर आश्रित दो ज़िन्दग़ियाँ अचानक समानान्तर चलती दिखने लगें तो काँच की दीवार एक अनावश्यक सच्चाई बन मध्य के आसन्न कोणों के परिमाप को और मुखर करती हुई तिर्यक होती चली जाती है.
काँच की दीवार पर रंगीन छींटों का बिम्ब बहुत कुछ साझा करता हुआ है, भाईजी. वृत्तियों का रंगीन होना अहं के स्थूल स्वरूप का ही परिचायक हुआ करता है. इस संदर्भ ने कविता का स्तर निर्धारित कर दिया है.
एक बार फिर आपकी कविता ने गहरे छुआ है, भाई नीरज जी.
शुभकामनाएँ

Comment by Neeraj Neer on July 4, 2014 at 10:22pm

आदरणीया डॉ प्राची सिंह साहिबा । जिस सूक्ष्मता एवं विस्तार से आपने इस कविता का विश्लेषण किया उसके लिए जितना आभार व्यक्त करूँ कम ही है ॥ आपकी टिप्पणी की सदा ही प्रतीक्षा रहती है । इस  सार्थक टिप्पणी के लिए बहुत धन्यवाद।  

Comment by Neeraj Neer on July 4, 2014 at 10:14pm

आदरणीय आशुतोष मिश्रा जी आपका हार्दिक धन्यवाद। 

Comment by Neeraj Neer on July 4, 2014 at 10:13pm

आदरणीय  भाई जितेंद्र जी आपका बहुत धन्यवाद। 

Comment by Neeraj Neer on July 4, 2014 at 10:12pm

आदरणीय गिरिराज भण्डारी जी आपका हार्दिक आभार। 

Comment by Neeraj Neer on July 4, 2014 at 10:12pm

आदरणीय नादिर खान जी आपके समर्थन एवं प्रोत्साहन के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥ 

Comment by Neeraj Neer on July 4, 2014 at 10:10pm

आदरणीया अन्नपूर्णा वाजपेयी आपका आभार। 

Comment by Neeraj Neer on July 4, 2014 at 10:09pm

आदरणीया इस उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 3, 2014 at 3:37pm

आदरणीय नीरज जी 

दो व्यक्तियों के बीच की ये दीवार कभी कभी खुद ही ढह जाती सी प्रतीत होती है...पर उसके होने का एहसास ना कुछ कहने देता है ना ही सुनने देता है...लेकिन मन तो अपने आप ही अर्थ बूझता रहता है..सवाल भी करता रहता है....शब्दों की या फिर उपस्थिति की भी ऊर्जा की भाषा मन भली भाँति समझता जो है 

तुम्हारे और मेरे बीच है 
कांच की एक मोटी दीवार 
जो कभी कभी अदृश्य प्रतीत होती है 
और पैदा करती है विभ्रम 
तुम्हारे मेरे पास होने का................यहाँ 'मेरे' शब्द की आवश्यता नहीं प्रतीत हो रही सिर्फ 'तुम्हारे पास होने का' से भी भाव स्पष्ट है 

मैं कह जाता हूँ अपनी बात 
तुम्हें सुनाने की उम्मीद में 
तुम्हारे शब्दों का खुद से ही 
कुछ अर्थ लगा लेता हूँ.

क्या तुम समझ पाती होगी 
मैं जो कहता हूँ 
क्या मैं सही अर्थ लगाता हूँ 
जो तुम कहती हो ..

कांच की इस दीवार पर 
डाल दिए हैं कुछ रंगीन छीटें.................सुन्दर ख़याल ..वाह!
ताकि विभ्रम की स्थिति में 
मुझे सत्य बता सकें .

कांच के उस पार से 
तुम्हे देखना अच्छा लगता है 
अच्छा लगता है तुम्हारी 
अनसुनी बातों का ...............................अनसुनी /या अनकही .....जब सुनी समझी ही नहीं तो अर्थ कैसे लगायेंगे ?
खुद के हिसाब से अर्थ लगाना ..

अभिव्यक्ति की अंतर्धारा नें बहुत प्रभावित किया... अपनी समझ भर कुछ कहने का प्रयास किया है..शायद सार्थक प्रतीत हो.

शुभकामनाएं 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service