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अनकही बातें...(नवगीत) - डॉ० प्राची

अनकही बातें धड़कतीं

मुस्कुराती

पल रही हैं.

 

थाम यादों की उँगलियाँ

स्वप्न जो

गुपचुप सजाये

शब्द आँखों में उफनते

क्या हुआ जो

खुल न पाये

 

भाव लहरें

तलहटी में

व्यक्त हो अविरल बही हैं.

 

रच गए जब

स्वप्न पट पर

नेह गाथा चित चितेरे

रंग फागुन से चुरा कर

कल्पनाओं में बिखेरे...

 

श्वास में

घुल कर बहीं जो

वो हवाएँ निस्पृही हैं.

 

खनखनाती खिलखिलाहट

प्रीत की

अनमोल पूँजी

व्यक्त हो

बन चीख-चिल्ली

द्वार जब-तब तोड़ गूँजी

 

किन्तु इस दहलीज पर

कब ये मिलन-पल

आग्रही हैं ?

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Comment

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Comment by Meena Pathak on February 4, 2014 at 6:54pm

बहुत सुन्दर नवगीत ..सादर बधाई 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on February 4, 2014 at 6:33pm

आदरणीया प्राचीजी ,

नवगीत के बाद भी गेयता कहीं बाधित नहीं है । मन में उठते गिरते भावों पर सुंदर नवगीत की हार्दिक बधाई ॥ 

Comment by Neeraj Nishchal on February 4, 2014 at 10:04am

अनिर्वचनीय गीत लिखा है आपने
बहुत बहुत शुभकामनायें प्रेषित करते हैं आपको ।

कृपया ध्यान दे...

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