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ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

बहर-।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ
...
कभी चाँदनी छूने आया करेगी।
सितारों की ज़ीनत बुलाया करेगी॥
...
बदन की मुलायम तहों में समेटे,
नदी पत्थरों को सुलाया करेगी।
...
भटकता फिरेगा कहीं पे अँधेरा,
कहीं रोशनी गीत गाया करेगी।
...
परिंदों की परवाज़ क्या खूब होगी,
हवा जब उन्हें आज़माया करेगी।
...
नई चूड़ियों से खनकती कलाई,
सवेरे-सवेरे जगाया करेगी।
...
ज़रा सी किसी बात पे रो पड़ूँगा,
कभी ज़िंदगानी हँसाया करेगी।
...
कहूँगा उदासी भरा शेर कोई,
अगर याद तेरी सताया करेगी।
...
किसी और का नाम ले के जवानी,
'रवी' की कहानी सुनाया करेगी।
...
-मौलिक एवं अप्रकाशित।
-23.12.2013

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Comment

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Comment by Tapan Dubey on December 24, 2013 at 6:28pm
आदरणीय रवि जी सबसे पहले तो क्या खूबसूरत गजल कही है बधाई

नई चूड़ियों से खनकती कलाई,
सवेरे-सवेरे जगाया करेगी। गजब का शेर भाई मजा आ गया

बदन की मुलायम तहों में समेटे,
नदी पत्थरों को सुलाया करेगी।
...
भटकता फिरेगा कहीं पे अँधेरा,
कहीं रोशनी गीत गाया करेगी। वाह वाह
Comment by annapurna bajpai on December 24, 2013 at 6:24pm

अति सुंदर गजल हेतु बहुत बधाई स्वीकारें आ0 रवि जी । 

Comment by Ravi Prakash on December 24, 2013 at 6:23pm
इतना स्नेह और आशीर्वाद देने के लिए कोटिश: धन्यवाद आ॰ गणेश जी। मन फूल कर कुप्पा हो गया। कृपया मार्गदर्शन करते रहें।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 24, 2013 at 5:19pm

रवि प्रकाश जी अगर एक शब्द में इस ग़ज़ल पर कुछ कहना हो तो कहूँगा------बेहतरीन

सभी शेर क से बढ़कर एक लगें, चूड़ियों वाला शेर, आय हाय हाय ,क्या कहने भाई, दाद कुबूल करें |

Comment by Ravi Prakash on December 24, 2013 at 2:57pm
आ॰ डा॰ गोपाल जी,आपको रचना अच्छी लगी, जान कर मन को असीम आनंद प्राप्त हुआ। स्नेह बनाए रखें।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 24, 2013 at 11:37am

रवी जी

आपके सभी अशआर एकं से बढ़कर एक है  i सुन्दर भावपूर्ण ग़ज़ल रचना हेतु बधाई i  

Comment by Ravi Prakash on December 23, 2013 at 8:42pm
इतने सूक्ष्म विश्लेषण के लिए कोटि कोटि धन्यवाद आ॰ सारथी जी। पुनश्च अरकान में तो रवि भी सरलता से लाया जा सकता है किन्तु पढ़ने में 'वि ' दीर्घ हो जाता है,इसीलिए.... शेष इस मंच के आदरणीय वरिष्ठ जन जैसा कहें... सादर।
Comment by Saarthi Baidyanath on December 23, 2013 at 6:37pm

बदन की मुलायम तहों में समेटे,
नदी पत्थरों को सुलाया करेगी।...जिंदाबाद 

नई चूड़ियों से खनकती कलाई,
सवेरे-सवेरे जगाया करेगी।.....आय हाय , लूट लिया साहब ..!


एक प्रार्थना है कि 'रवी' आप तख़ल्लुस लिखते हैं , जाहिर सी बात है अरकान में लाने के लिए ! क्या यह उचित है , गुरुजनों से जानना चाहता हूँ ..! बहरहाल उम्दा ग़ज़ल सुनाने के लिए अनंत बधाइयाँ :)

Comment by savitamishra on December 23, 2013 at 5:00pm

बहुत सुन्दर

Comment by Ravi Prakash on December 23, 2013 at 4:30pm
धन्यवाद आ॰ वर्मा जी।

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