मफार्इलुन मफार्इलुन मफार्इलुन फअल
समझते थे उगा सूरज सवेरा हो गया ,
यहाँ तो और भी गहरा अंधेरा हो गया।
जरा सा फर्क आया क्या दिलों में एक दिन ,
सगी बहनों में तेरा और मेरा हो गया।
कभी पहले से कोर्इ तय नहीं होती जगह ,
जहाँ चाहा वहीं संतो का डेरा हो गया।
कटेगी राम जाने किस तरह से जिन्दगी ,
मगर के साथ मछली का बसेरा हो गया।
फंसा कर जाल में मानेगा ही अब तो उसे ,
सुनहरी मछली पे मोहित मछेरा हो गया।
यहाँ पर घुटरहा है दम सभी का क्या करें ,
बड़ा ही तंग महगार्इ का घेरा हो गया।
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मौलिक अप्रकाशित
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वाह वा शानदार ग़ज़ल के लाजवाब अशआर के लए शेरो दाद ....
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