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सुनो तुम

न जाने कहाँ हो!

तुम्हें देख रही है मेरी आँखें

तुम्हें ताक रहीं है मेरी राहें

तुम्हें थाम रहीं है मेरी बाँहें

लेकिन तुम नहीं हो 

बहुत दूर दूर तक

बहुत दूर ...के पार

हाँ! शायद तुम वहाँ हो

सुनो तुम...

 

जाने, तुम हो भी या नहीं

कभी तो लगता है यही

पर तुम्हें होना चाहिए

है न

पर मै नहीं हूँ

तुम्हारे होने तक

मेरी नज़रें

नही जातीं वहाँ तक

कि तुम जहाँ हो

सुनो तुम,

न जाने कहाँ हो

कहाँ हो

कहाँ हो ....! 

             - गीतिका 'वेदिका'

(मौलिक/ अप्रकाशित) 

 

 

 

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Comment

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Comment by वेदिका on August 20, 2013 at 5:02pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय अमन जी!

आपने मेरे प्रश्न का मान रखा| मै अभिभूत हुयी आपके उदारता पूर्वक दिए गये समाधान से|

सादर !!   

Comment by aman kumar on August 20, 2013 at 4:53pm

जहाँ कारण के न होते हुए भी कार्य का होना पाया जाता है, वहाँ विभावना अलंकार होता है। उदाहरण -

बिनु पग चलै सुनै बिनु काना।

कर बिनु कर्म करै विधि नाना।

आनन रहित सकल रस भोगी।

बिनु वाणी वक्ता बड़ जोगी।

आपकी आँखे देख रही है ....................

ताक रही है 

थम रही है .......

फिर भी .............

कहा हो ???...........

ये मैंने प्रसंसा मे लिखा था .......  

Comment by वेदिका on August 20, 2013 at 4:40pm

आदरणीय अमन जी ! आपका हार्दिक आभार, आपने रचना को सराहा| यदपि मै समझ नही सकी  

//के बाद ..........

न जाने कहाँ हो

कहाँ हो

कहाँ हो ....! 

ये तो अलंकार युक्त रचा हुई ........// आप के कहने का आशय क्या था! अतुकांत रचना पर अभी अभी हाथ साधना शुरू किया है, कोई कमी बीसी देखिये तो सुझाव का सहर्ष स्वागत है| 

सादर !!   

Comment by aman kumar on August 20, 2013 at 4:06pm

तुम्हें देख रही है मेरी आँखें

तुम्हें ताक रहीं है मेरी राहें

तुम्हें थाम रहीं है मेरी बाँहें 

के बाद ..........

न जाने कहाँ हो

कहाँ हो

कहाँ हो ....! 

ये तो अलंकार युक्त रचा हुई ..........

अच्छी रचना बधाई 

Comment by वेदिका on August 20, 2013 at 2:08pm

आदरणीया विनीता जी!

बहुत बहुत आभार, आपने रचना पर आकर रचना को प्रोत्साहित किया!

Comment by ram shiromani pathak on August 20, 2013 at 2:02pm

आदरणीया सुन्दर प्रस्तुति //हार्दिक बधाई आपको 

Comment by Vinita Shukla on August 20, 2013 at 11:13am

सुन्दर, भावयुक्त रचना पर बधाई स्वीकारें, गीतिका 'वेदिका' जी.

Comment by वेदिका on August 19, 2013 at 11:16pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी! आपको कविता के भाव सुंदर लगे, आपने सराहना दी, आपकी आभारी हूँ| 

सादर !! 

Comment by annapurna bajpai on August 19, 2013 at 11:05pm
अरे वाह! आदरणीया गीतिका जी बड़े सुंदर भावों की अभिव्यक्ति हुई है ।
Comment by वेदिका on August 19, 2013 at 10:08pm

आत्मीय प्रतिक्रिया हेतु आपका हार्दिक आभार जितेन्द्र जी!

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