For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम कैसे श्रेष्ठ ? // गणेश जी "बागी"

हे पूज्य !

आप ग़लत थे,
मैं सही था |

आप के कहे को
मान दिया था,
अनुचित आदेश को
मान लिया था |
आप पर विश्वास था,
मिला था आशीर्वाद-
एक अफलित आशीर्वाद |

हे पूज्य!
आप ग़लत थे,
मैं सही था |

आपने तोड़ा था विश्वास,
किंचित, मुझे नही मानना था
संकुचित आदेश,
मुझे नही देना था-
अंगूठा,
दिखला देना था-
अंगूठा,


क्या होता ?
नालायक कहलाता !
अल्प काल के लिए,
किंतु नही घुलता
तिल-तिल, प्रति-दिन,

हे पूज्य!
आज भी लगता है,
आप ग़लत थे,
किंतु,
मैं भी ग़लत था,

आपको सुनता रहा ।
पिछला पोस्ट => अंतर्द्वंद्व

Views: 814

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 17, 2013 at 9:46am

बहुत बहुत आभार आदरणीया शालिनी कौशिक जी । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 17, 2013 at 9:46am

सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आ० केवल प्रसाद जी । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 17, 2013 at 9:45am

आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपके कहे से सहमत हूँ, मेरे लिए अतुकांत शैली में लिखना एक तरह से नवीन ही है, रचना भाव संप्रेषित कर सकी और आप से सराहना प्राप्त कर सकी, यह अत्यंत ही आनंद का विषय है,सादर आभार । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 17, 2013 at 9:40am

आदरणीयवंदना तिवारी जी, आपसे सराहना पाकर रचना और रचनाकार दोनों गौरवान्वित हैं । सादर आभार । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 17, 2013 at 9:39am

बहुत बहुत आभार प्रिय संदीप जी । आपको रचना अच्छी लगी, जान मन हर्षित है ।  

Comment by manoj shukla on April 17, 2013 at 9:12am
बधाई स्वीकार करें आदर्णीय.....बहुत सुन्दर रचना

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 17, 2013 at 9:01am

अंगूठे के इंगित से सर्वस समर्पण और त्याग कर देने का भाव बखूबी व्यक्त हुआ है आदरणीय गणेश जी..

इस इंगित के विस्तार पर मन मुग्ध है....

एकलव्य के पौराणिक प्रसंग गुरु-आज्ञा पालन को अपना धर्म समझने से लेकर सामयिक परिपेक्ष में अंगूठे के निशान या हस्ताक्षर किसी नितांत विश्वसनीय पर भरोसा करके दे देना...या अपना सर्वस्व ही उस अंधभक्ति में समर्पित कर देना.... और फिर जीते जाना एक अधूरेपन के साथ, भावनाओं के छलावे के साथ.

पर भावों की श्रेष्ठता तो देखिये..

इतने सब के बाद भी 

हे पूज्य!......................यही सम्मान देता हुआ संबोधन 
आज भी लगता है,
आप ग़लत थे,
किंतु,
मैं भी ग़लत था,....................और अपनी भी गलती को देखना, अपने हाल का दायित्व भी खुद पर ही ले लेना ..वाह !

इस उत्कृष्ट रचना के लिए हृदय से बधाई प्रेषित है आदरणीय गणेश जी.

सादर. 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 17, 2013 at 7:51am

आदरणीय बागी जी सादर प्रणाम, युगों युगों से चली आ रही मान देने की परम्परा, आज भी कुछ लोग माता के चरणों में जीभ चढाते हैं. मगर सत्य शाश्वत  और सही मार्ग है.किन्तु आज भी कहने में संकोच ही झलक रहा है. बहुत सुन्दर रचना. हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by shalini kaushik on April 17, 2013 at 12:59am
galat kabhi nahi manna chahiye ,bahut sundar bhavabhivyakti .badhai
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 16, 2013 at 10:30pm

आदरणीय गनेश जी बागी जी,  ’आप पर विश्वास था, मिला था आशीर्वाद...’ श्रध्दा, विश्वास, गुरूभक्ति, आत्म सम्मान, और त्याग का नाम ही एकलब्य है।  अतिसुन्दर। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई आदरणीय रिचा जी बधाई स्वीकार करें"
34 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई आदरणीय मिथिलेश जी बधाई स्वीकारें"
35 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"इस ज़र्रा नवाज़ी का सहृदय शुक्रिया आदरणीय धामी सर"
40 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"इस ज़र्रा नवाज़ी का सहृदय शुक्रिया आदरणीय"
40 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आपके मंच के बेहद महान आदरणीय सदस्य सौरभ जी में ये अहं नहीं तो और क्या है_ 1  समर साहब से तीन…"
46 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आभार। इंगित मिसरे पर…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई आजी तमाम जी , सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"बेहद दिलकश ग़ज़ल ! शानदार! ढेरो दाद।"
1 hour ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"//आपको फिलहाल कोई ऐसी किताब पढ़नी चाहिए जो आपका अहं कम कर सके//  आज़ी तमाम महोदय ! इस…"
2 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"//उसकी तारीफ़ में जो कुछ भी ज़ुबां मेरी कहेउसको दरिया-ए-मुहब्बत की रवानी लिखना// वाह! नयापन है इस…"
2 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ! अच्छी ग़ज़ल से मुशाइरा आरंभ किया आपने। बहुत बधाई! // यूँ वसीयत में तो बेटी…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"हर कहानी को कई रूप रुहानी लिखना जाविया दे कहीं हर बात नूरानी लिखना मौलवी हो या वो मुल्ला कहीं…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service