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हास्य घनाक्षरी

 

आप तो पहाड़ हम माटी भुरभुरी वाली

धूल न हो जाएँ कहीं , गले न लगाइए

आपका शरीर है ये तन से अमीर बड़ा

दुबले गरीब हम रहम तो खाइए

माटी वाला घर मेरा और द्वार छोटा बना

टूट नहीं जाए ज़रा धीरे धीरे आइए

फूल थी जो आप कद्दू हो गयी हो आजकल 
ऐसा क्या है खाया ज़रा हमें भी बताइए

 

संदीप पटेल “दीप”

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 4, 2013 at 1:02pm

हाहाहा 

हास्यघनाक्षरी पर सुन्दर प्रयास आदरणीय संदीप जी,

माटी वाला घर मेरा और द्वार छोटा बना

टूट नहीं जाए ज़रा धीरे धीरे आइए..............इतने भारी भरकम दोस्त हों तो चौखट बड़ी लगवानी चाहिए न, घर न टूट जाए,हाहाहा 

फूल थी जो आप कद्दू हो गयी हो आजकल 
ऐसा क्या है खाया ज़रा हमें भी बताइए.............लोग पतले होने के तरीके पूछ रहे हैं, और आप मोटापे से इंस्पायरड..हाहाहा 

हंसाने के लिए आभार और इस रचना के लिए बहुत बहुत बधाई 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 4, 2013 at 12:55pm

/फूल थी जो आप कद्दू हो गयी हो आजकल 
ऐसा क्या है खाया ज़रा हमें भी बताइए/

बात बन गई संदीप जी । 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 4, 2013 at 12:50pm

आदरणीय राम जी सादर
इसे कुछ इस तरह से सुधार किया है

फूल थी जो आप कद्दू हो गयी हो आजकल
ऐसा क्या है खाया ज़रा हमें भी बताइए

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 4, 2013 at 12:48pm

आदरणीय गणेश बागी सरजी सादर प्रणाम

सच कहा आपने ये मेरे लेखन की कमी ही है
जिसमे मैं ये स्पष्ट नही कर पाया
के मैने ये कहा है के
फूल जैसे आप ऐसी हो गयी हो आजकल
अर्थात मोटी हो गयी
जो उपरोक्त पदों मे स्पष्ट कर भी चुका हूँ
और पहले आप फूल जैसी थी
तो फिर कौन सी चक्की का खाना खाया आपने

सुधार करने की कोशिश करूँगा

Comment by ram shiromani pathak on April 4, 2013 at 11:46am

आदरणीय गणेश सर से  सहमत हूँ! .... हार्दिक  बधाई संदीप भाई 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 4, 2013 at 11:36am

//कहाँ लगी ऐसी चक्की हमें भी बताइये//

कैसी चक्की ? 

हास्य घनाक्षरी पर बढ़िया प्रयास हुआ है, ध्यान रहे रचना में बात पूरी होनी चाहिए । 

//फूल जैसी आप ऐसी हो गयीं जो आजकल// भाई जी फूल कोमलता का प्रतिक है, और ऊपर में आप उन्हें भारी भरकम बता चूके हैं फिर "फूल" क्यों ? 

सादर । 

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