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लगता इसकी मति गई मारी बाबाजी

नीयत हो यदि साफ़ हमारी बाबाजी
नियति भी तब लगेगी प्यारी बाबाजी

पुस्तक, सी डी और  दवायें बेच रहे
सन्त नहीं, वे  हैं व्यापारी बाबाजी

कोई किसी का सगा नहीं है दुनिया में
सब मतलब की रिश्तेदारी बाबाजी

दाज नहीं तो दूल्हा बैरंग लौट गया
इसको कहते दुनियादारी बाबाजी

तुम पूछो या मत पूछो, मैं कहता हूँ
क़र्ज़ है सबसे बड़ी बीमारी बाबाजी

ऊँची एड़ी वाले सैंडिल फिसले तो
लग जायेगी चोट करारी बाबाजी 

अलबेला खत्री तो कुछ भी लिखता है
लगता इसकी मति गई मारी बाबाजी

-अलबेला खत्री

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Comment by AVINASH S BAGDE on July 21, 2012 at 6:24pm

कोई किसी का सगा नहीं है दुनिया में 
सब मतलब की रिश्तेदारी बाबाजी 

वाह वाह...

 

Comment by Raj Tomar on July 21, 2012 at 5:33pm

बहुत खूब अलबेला साब. क्या बात कही :)

Comment by Albela Khatri on July 21, 2012 at 5:12pm

आपकी स्नेहसिक्त टिप्पणी ने  गदगद कर दिया ...
डॉ सूर्या बाली सूरज जी
आपका हार्दिक आभार

Comment by Albela Khatri on July 21, 2012 at 5:05pm

धन्यवाद  भाई श्री अरुण जी........
आभार

Comment by Albela Khatri on July 21, 2012 at 5:04pm

बहुत बहुत धन्यवाद सीमा जी.........
हार्दिक आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 21, 2012 at 1:03pm

अदभुत रचना
ये तीर केवल आपके धनुष से ही निकल सकता है ये बात तो पक्की है
हास्य लिए इतना गंभीर घाव करने की क्षमता केवल उसी तीर में है
वाह वाह वाह
बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें साहब
जय हो

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on July 21, 2012 at 12:32pm

अलबेला भाई काश इसी तरह सबकी मति मारी जाती। कम से कम समाज की विसंगतियाँ तो उजागर होतीं। बहुत सुंदर  रचना। दाद कुबूल करें !!

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 21, 2012 at 12:11pm

वाह इक और अलबेली रचना बहुत खूब बधाई...

Comment by Albela Khatri on July 21, 2012 at 11:28am
धन्यवाद एडमिन महोदय,

इस रचना को प्रकाशित  करने के लिए आपका आभार 
सादर

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