For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल - जिन्हें डर है खुदा का

उन्हें हक है कि मुझको आजमाएं

मगर  पहले  मुझे अपना बनाएं

 

खुदा  पर है यकीं तनकर चलूँगा

जिन्हें डर है खुदा का सर झुकाएं

 

जुदा होना है कल तो मुस्कुराकर

चलो   बैठे   कहीं  आँसू   बहाएं

 

तुम्हारे  आफताबों  की वज़ह से

अभी  कुछ  सर्द  है  बाहर हवाएं

 

तिरा  दरबार  है मुंसिफ भी  तेरे

कहूँ  किससे  यहाँ  तेरी  खताएं

 

खता उल्फत की करने जा रहा हूँ

कहो  अय्याम  से  पत्थर उठाएं

 

अंधेरे   सूर्य  से  डरते   नही   है

चलो हम दीप बनके  जगमगाएं

 

............................... अरुन श्री !

Views: 824

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 4, 2012 at 8:49am

आदरणीय अरुण भाई..ऐसा अनेक बार हुआ है,जब अनेक का अनेकों हो गया है|स्वयं मैथिलीशरण गुप्त ने भारत भारती में कई बार ऐसा किया है|अपने सौर मण्डल के सापेक्ष एक आफताब वाली बात वक्रतुंड महाकाय कोटि सूर्य समप्रभ के सम्मुख मिथ्या हो जाती है|मैं कोई वरिष्ठ नहीं हूँ मित्र और कोई आलोचक भी नहीं|मुझे आपकी रचना बहुत ही पसंद आई|फिलहाल आपके द्वारा दिए गए उदाहरणों को हृदयंगम कर लिया है और आपकी अपना पक्ष रखने की इस कला ने भी मुझे आपका मुरीद बना दिया है|सादर वंदे

Comment by Arun Sri on April 3, 2012 at 8:55pm

संदीप जी ! आपने गज़ल को अपना समय दिया ! आभारी हूँ !

Comment by Arun Sri on April 3, 2012 at 8:54pm

प्रदीप सर ! आपकी प्रतिक्रिया ने गज़ल का सम्मान बढ़ाया ! आभारी हूँ !

Comment by Arun Sri on April 3, 2012 at 8:52pm

साही सर ! धन्यवाद सराहना के लिए !

Comment by Arun Sri on April 3, 2012 at 8:50pm

मनोज मयंक सर , मुझे भी यही पता है कि आफताब सूरज को कहतें हैं !

तुम्हारे आफताबों की वज़ह से

अभी कुछ सर्द है बाहर हवाएं..............ये एक प्रतीकात्मक बात है ! मैंने कहने का प्रयास किया है कि सक्षम लोग भी गलत लोगों की  दासता स्वीकार कर अपनी क्षमता खो  देते है ! बाकी आप वारिष्ट है ! आप जो कहेंगे निश्चित ही सही होगा !

और रही इसे बहुवचन की तरह प्रयोग करने की बात तो ऐसे कई उदहारण है जहाँ इस शब्द का प्रयोग किया गया है ! जैसे

यहाँ जुगनुओं की हुकूमत हुई है
यहाँ आफताबों का रुतबा नही है
या फिर फ़िराक गोरखपुरी की किताब गुले नगमा से एक गज़ल का शे'र
दौरे-अफलाक का शबाब है तू
आफताबों का आफ़ताब है तू

या फिर "बज्में जिंदगी - रंगे शायरी " नामक  किताब से -
इनका शजरा आफताबों से भी ऊँचा है बहुत
आपसे मिलीए जनाबे इश्क आली खांन्दा

बाकी गज़ल पर आपकी सराहना के लिए धन्यवाद !

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 3, 2012 at 2:12pm

ख़ूबसूरत शब्द, ख़ूबसूरत भाव, ख़ूबसूरत ग़ज़ल| इससे अधिक कह पाना मेरे वश का नहीं अरुण जी| बहुत सुन्दर| बधाईयां!

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 3, 2012 at 2:02pm

बहुत खूब ...वाह वाह अरुण भाई ....गजल अच्छी बनी है और अंदाजेबयां भी माशाल्लाह...सिर्फ एक शेर समझ में नहीं आया ....

तुम्हारे आफताबों की वज़ह से

अभी कुछ सर्द है बाहर हवाएं|मुझे जहाँ तक पता है आफताब सूरज को कहते हैं और इसे बहुवचन की तरह प्रयुक्त नहीं किया जा सकता|फिर भी विरोधाभास का एक बेहतरीन उदाहरण|आभार|

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 3, 2012 at 2:02pm

kish ansh ko sabse behtar chunu, asmanjas main hoon. snehi arun ji sadar badhai

Comment by Arun Sri on April 3, 2012 at 12:10pm

मंजू मैम ! सराहना हेतु धन्यवाद !

Comment by minu jha on April 3, 2012 at 11:44am

खता उल्फत की करने जा रहा हूँ

कहो  अय्याम  से  पत्थर उठाएं

बहुत खुब अरूण जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service