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२२१/२१२१/१२२१/२१२


तकरार करते करते ही सावन गुजर गया
मनुहार करते करते ही सावन गुजर गया।१।
*
बाधा मिलन में उनसे जो हालात थे उलट
अनुसार करते करते ही सावन गुजर गया।२।
*
हम खुद में व्यस्त  और  वो औरों में व्यस्त थे

व्यवहार करते  करते  ही  सावन  गुजर गया।३।

*
इस पार हम थे बैठे तो उस पार थे सजन
नद पार करते करते ही सावन गुजर गया।४।
*
उनसे मिलन की बात थी लेकिन हमें ये मन

तैय्यार करते  करते  ही  सावन  गुजर गया।५।
*
उस पर कहा सखी ने जो सजना सँवरना भी

शृंगार करते  करते   ही  सावन  गुजर  गया।६।

*
वो लोग खुशनसीब थे जिन का यूूँ रार बिन
बस प्यार करते करते  ही सावन गुजर गया।७।

मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment by Samar kabeer on August 16, 2021 at 2:54pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, बड़ी रदीफ़ पर ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'इतवार करते  करते  ही  सावन  गुजर गया'

इस मिसरे में 'इतवार' के साथ रदीफ़ का रब्त समझ नहीं आ रहा है?

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 9, 2021 at 6:46pm

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद। आपका कहना सही है । अंतिम शेर में न" के स्थान पर "यूँ" पढ़ें । सादर..

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 9, 2021 at 5:07pm

जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, सावन पर सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने, बधाई स्वीकार करें। अंतिम शे'र में  'न' होने से अर्थ बदल रहा है, ग़ौर कीजियेगा।  सादर।

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