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बूँद भर 

 

आँख में ठहरा रहा

अश्रू सम बहरा रहा

विस्फरित हो तन गया

बूँद भर जल बन गया

कह  दिया न कहना था जो

न सहा वो  सहना था जो

था ही क्या जो कह गया

मन बेमन हो रह गया

 

एक ताला बनती  चाबी

प्रश्न- माला कितनी बांची

कैसे झटका  सह गया

मोती -मोती कह गया

 

कैसे -कैसे  मन ने टाला

मन ही ने लेकिन उछाला

झरना सा सब झर  गया

बूँद भर जल रह गया

-------------

मौलिक व अप्रकाशित"

 

Views: 397

Comment

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Comment by vijay nikore on August 9, 2019 at 3:59am

अच्छी रचना के लिए बधाई, आदरणीया अमिता जी

Comment by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on August 6, 2019 at 8:20pm

 amita tiwari जी,
सुन्दर रचना | हार्दिक बधाई | 

Comment by Samar kabeer on August 4, 2019 at 10:59am

मुहतरमा अमिता तिवारी जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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