For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपाहिज़ कौन: लघुकथा

मुझसे गाड़ी का इंतज़ार नहीं हो रहा था, किसी भी तरह जल्दी गंतव्य स्थान पर पहुँचना था । अभी नया-नया मंत्री पद संभाला था, सो मंत्री पद का शऊर कहाँ से आता ? ऊपर से समाज सेवा का भूत सर चढ़ का नाच रहा था | “पब्लिक की समस्याओं का निवारण करने के लिये, दिन हो या रात ? हमेशा तत्पर रहूंगी |” आज ही तो, ये शपथ ली थी | तभी दिमाग़ में कुछ कौंधा और मैं निकल पड़ी । सामने से जो बस आती  दिखी, मैं बैठने को उतावली हो उठी । बिना कुछ देखे सुने ही, बस पर चढ़ गई । इंसानों से ठसाठस भरी बस थी। भीषण गरमी थी । लोग एक दूसरे पर लदे जा रहे थे।  कई लोग छत की रॉड से लटके पट्टों को पकड़ें हुये खड़े थे । वो झूलते हुए कभी आगे हो जाते, तो कभी पीछे । मैंने सोचा थोड़ा आगे जाऊँ, शायद बैठने की जगह मिल जाए ? इस लिए थोड़ा झुक कर आगे बढ़ चली ।

                           ऊपर उठे बाज़ुओं से, अजीब-अजीब दुर्गन्ध आ रही थी, जिससे पूर्ण वातावरण दूषित था। किसी तरह झुक-झुका के आगे तक पहुँची | कहीं कोई बैठने की कोई जगह नज़र नहीं आई। अब लगा, ग़लती कर दी आगे आकर । लेकिन अब क्या फ़ायदा ? क्योंकि अब न और आगे जा सकती थी, न ही वापस पीछे लौट सकती थी । बीच में सेंडविच बनना मजबूरी थी ।

                                          रॉड पर झूलते पट्टे को पकड़ने का प्रयास किया, लेकिन पकड़ नहीं सकी। हाइट कम होने का ख़ामियाज़ा, ऐसी जगह पर भुगतना पड़ता है । मैंने ख़ुद को समेट कर किसी तरह खड़ा किया । बस में जब भी ब्रेक लगती, मैं न चाहते हुए भी गिर पड़ती । लोग हँसने लगते । “मैडम, ज़रा सीधी खड़ी रहिये ।“ पीछे से एक ने फबती कसी। “अरे अरे ! देखते नहीं, बेचारी पट्टा भी नहीं पकड़ पा रही ? मैडम को गोद में बिठा लो ।” “आइये मैडम, हमारी गोद में बैठ जाइए। यहाँ बहुत जगह है ।“ पसर कर बैठा हुआ शख़्स बोला। कहाँ फँस गई इन खूँसटों के बीच में ? देख कर ही सब शैतान नज़र आ रहे थे ।

                           मन कर रहा था----“मुँह नोच लूं इन सबका, पर थी तो औरत जात ही ? मैंने भी कुछ न बोलने में ही भलाई समझी ।‘ पूरी बस में चालीस-पचास लोग तो थे ही, लेकिन ये सब आँखों वाले अंधे और कानों वाले बहरे ही थे। इन्हें न कुछ दिखाई दे रहा था, न सुनाई दे रहा था ।

                                तभी मेरे पीछे से एक नौजवान आगे आया, उसने अपने बग़ल में बैसाखी दाब रखी थी । ऊँगली दिखाते हुए बोला -------- “ आप यहाँ बैठ जाइए प्लीज़ ।“  मैंने मुड़ कर देखा, मेरे पीछे किनारे की एक सीट ख़ाली थी। शायद वो अपनी सीट मुझे दे रहा था। “नो थैंक यू , प्लीज़। आप बैठिए। वैसे भी मेरा स्टापेज आ गया, मुझे यहीं उतरना है ।“ थैंक यू वैरी मच” कहते हुये मै बस से उतर गयी |  दिमाग में अभी भी वही सब कुछ चल रहा था........”शारीरिक विकलांगता, विकलांगता है ही नहीं | वो अपाहिज सा दिखने वाला इंसान, भले ही उसके हाथ में बैसाखी थी, वो मुझे पूर्ण रूप से स्वस्थ दिख रहा था |

                               अपाहिज तो वो हैं, जो मानसिक रूप से विकलांग हैं | समाज में सड़न की तरह फैलने वाली इस मानसिक अपंगता का ईलाज करना होगा ? और अगर जल्दी ही इसका ईलाज न किया गया तो, अपंगता रुपी ये बीमारी महामारी का रूप ले लेगी |” उसी रात मैंने प्रशासनिक अधिकारीयों को बुला कर उनके साथ एक अर्जेंट मीटिंग की और एक आर्डर पास किया...........“कि सभी पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सी.सी.टी.वी लगाये जायेंगे | जिसका कंट्रोल पुलिस हेडक्वाटर से रहेगा | आरोपियों अतार्थ ( मानसिक रूप से अपंग रोगियों ) को रंगे हाथ पकड़ने की धरपकड़ शुरू हो गयी है |

मौलिक व अप्रकाशित                                                             

 

लेखिका

उमा विश्वकर्मा

मो. ९४१५४०११०५ 

Views: 483

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by pratibha pande on August 22, 2017 at 8:48am

गंभीर विषय को लेकर कथा  का ताना बाना बुना है आपने ..हार्दिक बधाई आपको आदरणीया..  शिल्प में थोड़ी और कसावट से शानदार लघुकथा का रूप ले लेग आपकी ये रचना 

Comment by Samar kabeer on August 21, 2017 at 7:52pm
मोहतरमा उमा जी आदाब,ये लघुकथा कम कहानी ज़ियादा लग रही है,मैं जनाब उस्मानी साहिब से पूरी तरह सहमत हूँ,उनकी बातों का संज्ञान लें । इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 19, 2017 at 6:37pm
यहाँ पहली बार आपकी रचना पढ़ी। बहुत बढ़िया शुरुआत करते हुए बहुत बढ़िया विषय पर बहुत अच्छे ु्प्रयास के लिए सादर हार्दिक बधाई आपको आदरणीय उमा विश्वकर्मा जी। लघुकथा संदर्भ में हमें यह जानना व ध्यान रखना होता है कि लघुकथा की शुरुआत और पात्र के मन में आ रहे भावों को कहानी की तरह यूँ विस्तार नहीं दिया जाता है, ऐसा व अन्य लघुकथा गुणों के बारे में हमारे गुरूजन के आलेखों में उदाहरण सहित समझाया गया है। उनका अध्ययन कर इस रचना को बेहतर रूप दिया जा सकता है। // उसी रात मैंने .. // से घटना के क्रम में थोड़ा अंतराल शायद कालखण्ड दोष ला रहा है। वरिष्ठजन की टिप्पणियों से मार्गदर्शन लीजिएगा।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
6 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service