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ग़ज़ल ..22 22 22 22 22 2 ....सीला माँ (शीतला माता )

ताप घृणा का शीतल करदे सीला माँ

इस ज्वाला को तू जल करदे सीला माँ

 

इस मन में मद दावानल सा फैला है

करुणा-नद की कलकल करदे सीला माँ

 

सूख गया है नेह ह्रदय का ईर्ष्या से

इस काँटे को कोंपल करदे सीला माँ

 

प्यास लबों पर अंगारे सी दहके है

हर पत्थर को छागल करदे सीला माँ

 

सूरज सर पर तपता है दोपहरी में

सर पर अपना करतल करदे सीला माँ

 

दूध दही हो जाता है शीतलता से

भाप जमा कर बादल करदे सीला माँ

 

गम की धूप सताती है फिर बेटों को

पग पग पर फिर पीपल करदे सीला माँ

 

खंडित को भी मंडित कर देती है तू 

कंकर को तू कोमल करदे सीला माँ

 

क्रोध दया को छाँव नहीं देगा मन में

इस सहरा को जंगल करदे सीला माँ

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 15, 2015 at 9:48pm

आ० खैरादी जी

लाजवाब  . बेहतरीन . निशब्द .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 15, 2015 at 9:43am

क्या बात है ! आदरणीय खुर्शीद भाई , ग़ज़ल भी भजन भी और एक दिल से निकली प्रार्थाना भी , सब का आनन्द एक साथ मिल गया । हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by ajay sharma on March 14, 2015 at 10:57pm

लाजवाब, उम्दा ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 14, 2015 at 9:32pm

अनुपम अतुलनीय 

आपकी कलम का एक और कमाल 

आदरणीय खुर्शीद सर इस बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by Shyam Mathpal on March 14, 2015 at 7:55pm

Aadarniya Khurseed Khairadi Ji,

Shitala Mata ko samarpit bhavpurn rachna ke liye dili mubarkbad.

Comment by khursheed khairadi on March 14, 2015 at 10:08am

आदरणीय श्याम जी ,आ.उमेश जी,आ.महर्षि जी ,आदरणीय हरिप्रकाश जी ,आदरणीय विजयशंकर जी .आ.सोमेश जी ,आ. नीरज सर ,आ. जान साहब ,आदरणीया राजेश दीदी ,आप सभी ने ,राजस्थान में मनाये जाने वाले शीतला अष्टमी पर्व को समर्पित मेरे इस अनगढ़ प्रयास को जो प्यार दिया उसके लिए हृदय से आभारी हूं |इस दिन ठंडा और बासी भोजन खाया जाता है ,यह वही पूजनीय शीतला माता है ,जो लोकमान्यता के अनुसार चेचक रोग से बच्चों को बचाती है तथा कई जगह छोटी माता के रूप में पूजी जाती है |

केक्टस को तू उत्पल करदे सीला माँ 

बासी को तू निर्मल करदे सीला माँ 

Comment by somesh kumar on March 14, 2015 at 8:43am

जय जय शीतला माँ और जय जय माँ के पावन चरणों में इस रचना को निवेदित करने वाले खुर्शीद भाई जी |

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 13, 2015 at 9:52pm
ताप घृणा का शीतल करदे सीला माँ
इस ज्वाला को तू जल करदे सीला माँ
वाह , बहुत सुन्दर , आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी , सादर।
Comment by maharshi tripathi on March 13, 2015 at 9:44pm

इस भावपूर्ण गजल पर दाद कुबुलें आ. khursheed khairadi  जी |.

Comment by Neeraj Neer on March 13, 2015 at 7:45pm

बहुत ही सुंदर ... माँ प्रकृति के प्रति इतना अनुराग एवं श्रद्धा भाव ही इतनी सुंदर रचना का कारण है .... हार्दिक बधाई 

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