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"मैं"

इक भावुक, बहुत ही भावुक लड़की

किसी ने कहा

भावुकता निश्छलता का प्रतीक है

तो किसी ने कहा पवित्रता का ..

 

'ना' भावुकता न तो निश्छलता का प्रतीक है

और न ही पवित्रता का ..

ये तो प्रतीक है

हर पल छले जाने की तत्परता का ..

 

'हाँ'

छली जाती हूँ मैं , हर दम, हर कदम

कभी अपनों के हाथों, तो कभी गैरों के

कभी साहिलों से, तो कभी लहरों से,

 

कई बार चाहा ,

हो जाऊं 'धरा'

रहूँ  'अचल'

बन जाऊं  'दरिया'

बहूँ  'अविरल'

 

पर नहीं बन सकी मैं 'धरा'

और ना ही 'दरिया'

क्यूंकि

'मैं ' हूँ

इक भावुक, बहुत ही भावुक लड़की

पग पग पर छली गयी मैं.. टूटती बिखरती मैं..

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Comment

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Comment by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 27, 2010 at 2:26am
Aneeta Jee, Its really a heart hunting expression. Thanks for it. Abhay.....
Comment by madan kumar tiwary on December 17, 2010 at 7:10pm

बहुत हीं अच्छी लगी आपकी कविता । प्रयास करे प्रकाशित करवाने का । वाकई ओपेन बुक यह अच्छी जगह लगी।

Comment by Rash Bihari Ravi on December 17, 2010 at 2:47pm

wah kya bat hai khubsurat

Comment by Anita Maurya on December 17, 2010 at 1:01pm

bahut bahut sukriya .. Ganesh ji.. aapka badhai dena sarthak kar gaya mere likhne ko...


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 17, 2010 at 10:31am

पर नहीं बन सकी मैं 'धरा'

और ना ही 'दरिया'

क्यूंकि

'मैं ' हूँ

इक भावुक, बहुत ही भावुक लड़की....

 

वाह अनीता जी वाह, यक़ीनन आप ने यथार्थ को नजदीक से देखा है क्योकि युही कोई रचना नहीं बनती, बेहतरीन काव्य कृति | बधाई स्वीकार करे .....

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