For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम उजला सन्दर्भ हो , जिसका मैं हूँ वही कहानी...

मैं हूँ बंदी बिन्दु परिधि का, तुम रेखा मनमानी |
मैं ठहरा पोखर का जल, तुम हो गंगा का पानी ||

मैं जीवन की कथा-व्यथा का नीरस सा गद्यांश कोई इक |
तुम छंदों में लिखी गयी कविता का हो रूपांश कोई इक |
मैं स्वांसों का निहित स्वार्थ हूँ , तुम हो जीवन की मानी  ||

धूप छाँव में पला बढा मैं विषम्तायों का हूँ सहवासी |
तुम महलों के मध्य पली हो ऐश्वर्यों की हो अभ्यासी | 
मैं आँखों का खारा संचय , तुम हो वर्षा अभिमानी ||

विपदायों, संत्रासों से मेरा अटूट अनुबंध रहा है |
पीड़ा से अनभिज्ञ रही तुम सुख से ही सम्बन्ध रहा है |
मैं शमशानी श्वेत वस्त्र हूँ , तुम हो चूनर धानी ||

सुबह शाम सा दो स्वासों का मिलन सदा ही रहा असंभव |
"'अजय "सत्य है फिर भी जीवन तट बंधों पर ही है संभव | 
तुम उजला सन्दर्भ हो , जिसका मैं हूँ वही कहानी ||

मैं हूँ बंदी बिन्दु परिधि का तुम रेखा मनमानी |
मैं ठहरा पोखर का जल तुम हो गंगा का पानी ||

अप्रकाशित / अमुद्रित सर्वाधिकार 
सुरक्षित : अजय कुमार शर्मा 

Views: 355

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 30, 2012 at 3:02pm
सुबह शाम सा दो स्वासों का मिलन सदा ही रहा असंभव |
"'अजय "सत्य है फिर भी जीवन तट बंधों पर ही है संभव | 
तुम उजला सन्दर्भ हो , जिसका मैं हूँ वही कहानी ||
बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई श्री अजय शर्मा भाई
 
देखो फिरभी साँझ पड़े दूर क्षितिज पर मिलना हो सकता है संभव
दूर क्षितिज पर अंकित,भले असंभव टंकित, किरने आशा की संभव 
खोले द्वार सम्भावानाओ के, नव वर्ष में आओ आगाज करे ।
तुम उगती किरणे हो, देखू उसमे लिखने वही कहानी
मै ठहरा पुराना पोखर जल, तुम निर्मल गंगा का पानी ।।  - लक्ष्मण लड़ीवाला 

 

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 30, 2012 at 10:53am

मैं हूँ बंदी बिन्दु परिधि का तुम रेखा मनमानी |
मैं ठहरा पोखर का जल तुम हो गंगा का पानी ||.....वाह! उत्तम!

आदरणीय अजय शर्मा जी सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by वीनस केसरी on December 28, 2012 at 10:09pm

SHAAAAAANDAAAAAAAAAAAAAAAAAR


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 28, 2012 at 10:49am

बहुत सुन्दर गीत आदरणीय अजय जी,

मन के कोमल भाव, सुकोमल सुन्दर शब्दों में जैसे बहे जा रहे हैं...बहुत खूब, हार्दिक बधाई इस अभिव्यक्ति पर.

इस सुन्दर गीत को यदि मात्रा गणना के अनुसार थोडा सा साधा जाए तो इसमें अद्भुत निखार आ जाएगा...सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
12 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
12 hours ago
Tilak Raj Kapoor updated their profile
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
13 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service