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व्याजोक्ति [लघु कथा ]

आलोक की बहन रीमा के पति के अचानक अपने घर परिवार से दूर पानीपत में हुए निधन के समाचार ने आलोक और उसकी पत्नी आशा को हिला कर रख दिया |दोनों ने जल्दी से समान बांधा ,आशा ने अपने ऐ टी म कार्ड से दस हजार रूपये निकाले और वह दोनों पानीपत के लिए रवाना हो गए ,वहां पहुंचते ही आशा ने वो रूपये आलोक के हाथ में पकड़ाते हुए कहा ,''दीदी अपने घर से बहुत दूर है और इस समय इन्हें पैसे की सख्त जरूरत होगी आप यह उन्हें अपनी ओर से दे दो और मेरा ज़िक्र भी मत करना कहीं उनके आत्मसम्मान को ठेस न पहुंचे''|अपनी बहन के विधवा होने पर अशोक बहुत भावुक हो रहा था ,उसने भरी आँखों से चुपचाप वो रूपये अपनी बहन रीमा के हाथ थमा दिए | देर रात को रीमा अपनी बहनों के साथ एक कमरे में सुख दुःख बाँट रही थी तभी आशा ने उस कमरे के सामने से निकलते हुए उनकी बाते सुन ली, उसकी आँखों से आंसू छलक गए ,जब उसकी नन्द रीमा के शब्द पिघलते सीसे से उसके कानो में पड़े ,वह अपनी बहनों से कह रही थी ,''मेरा भाई तो मुझसे बहुत प्यार करता है , आज मुसीबत की इस घड़ी में पता नही उसे कैसे पता चल गया कि मुझे पैसे कि जरूरत है ,यह तो मेरी भाभी है जिसने मेरे भाई को मुझ से से दूर कर रखा है |

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Comment by Rekha Joshi on July 25, 2012 at 10:54pm

अशोक जी ,सादर नमस्ते ,प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद ,आपका आभार 

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 25, 2012 at 10:17pm

रेखा जी

         सादर, सुन्दर लघुकथा. स्वार्थ कभी झूठ भी बुलवा ही देता है.

Comment by Rekha Joshi on July 25, 2012 at 12:01pm

अरुण बेटा ,जिंदगी में कभी कभी छोटी सी बात भी रिश्तों में दरार डाल देती है ,आपको कथा पसंद आई ,बहुत बहुत धन्यवाद 

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 25, 2012 at 11:40am

बड़ी ही सुन्दर लघु कथा है, रेखा माँ आपने बड़ी सुन्दरता से वर्णन किया है.

Comment by Rekha Joshi on July 24, 2012 at 1:51pm

आदरणीय शुभ्रांशु जी ,संबंधों को सहेज कर रखना कई बार बहुत मुश्किल हो जाता है ,आपको कथा अच्छी लगी ,धन्यवाद 

Comment by Shubhranshu Pandey on July 24, 2012 at 1:27pm

सम्बन्धों को बनने और बिगडने में बस एक शब्द और पल ही काफ़ी होता है....

घटना विशेष पर एक सुन्दर कथा..अन्त कई पश्नों और भावों को विस्तार देता हुआ लगता है.........बहुत सुन्दर...

Comment by Rekha Joshi on July 24, 2012 at 12:59pm

आदरणीया डा प्राची जी ,ऐसे ही सदा प्रोत्साहित करते रहिये ,आपका आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 24, 2012 at 12:38pm

अक्सर लोग दूसरों को वैसे नहीं देखते जैसे  दूसरे लोग  वास्तव में होते हैं, बल्कि वैसे देखते हैं जैसी उनकी स्वयं की सोच होती है..... सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकारें आदरणीया रेखा जी. 

Comment by Rekha Joshi on July 24, 2012 at 12:31pm

आदरणीया सीमा जी ,सादर नमस्ते ,सत्य लिखा है आपने ,रिश्तों में मौजूद पूर्वाग्रही सोच मधुरता को किस प्रकार विषमय कर जाती है आपका बहुत बहुत धन्यवाद 

Comment by Rekha Joshi on July 24, 2012 at 12:14pm

आदरणीय प्रभाकर की ,सादर नमस्ते ,आपके कमेन्ट मुझे सदा उत्साहित करते है ,आदरनीय बागी जी के अनमोल सुझावों का मै स्वागत करती हूँ ,आपका आभार 

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