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लघु कथा - बैकवर्ड

 
कैलाश एक मल्टीनेशनल कम्पनी में सीईओ हैं सो ऑफिस में बहुत सारी जिम्मेदारियां उन्हें निभानी पड़ती है.
सुबह दफ्तर पहुँचने के बाद दिन कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता.  लेकिन इन सब के बीच भी दूर गाँव रह
रहे माता-पिता से फ़ोन पर बात कर के उनका हाल चाल लेना नहीं भूलते.  रोज रात को सोने से पहले  उनसे
बात करने का उन्होंने नियम बना लिया था.
कैलाश जी के दफ्तर के हेड ऑफिस से आये हुए चेयरमैन के सम्मान में पार्टी का आयोजन किया गया था. 
सभी सहकर्मी पार्टी का लुत्फ़ उठाने में मशगुल थे.  कैलाश जी हाथ में फ्रूट-जूस का गिलास लिए-लिए यहाँ-वहाँ
घूम-घूम कर सब से मिल-जुल रहे थे. उनके हाथ में फ्रूट-जूस का गिलास देख कुछ मित्रों ने कटाक्ष कर
दिया - क्यों कैलाश जी,  आप ड्रिंक्स नहीं ले रहे? 
कैलाश जी ने हौले से मुस्कराते हुए कहा - नहीं दोस्त, मुझे ड्रिंक्स लेकर माडर्न कहलवाने के बजाये फ्रूट-जूस लेकर
बेवकूफ कहलवाना अधिक पसंद है.  मैं ऐसा कोई काम नहीं करना चाहता जिसकी चर्चा अपनी माँ से करते हुए शर्म आये.

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Comment by Saurabh Pandey on June 29, 2012 at 2:43pm

आदरणीया नीलम जी, हर के जीवन में ऐसे कुछ वाकये होते हैं जो आरोपित नहीं होते सो अचंभित भी नहीं करते, बल्कि प्रतिदिन के सकारात्मक क्षणों के अग्रसरित होने का कारण होते हैं. किन्तु, उस तरह के क्षणों से एकसार न होने के कारण अन्य के लिये वही वाकये उन्हें महान विचित्रता का बोध कराते हैं.

आपकी इस लघुकथा में जो सच्चाई है वह किसी विधा या शिल्प की मोहताज़ नहीं.  एकबारगी तो मुझे लगा कि आपने मेरे दैनिक जीवन के उस पहलू को उजागर कर दिया जिससे मेरे माता-पिता और पारिवारिक सदस्यगण पूरी तरह भिज्ञ हैं.  वस्तुतः, मैं आज भी लगभग सारी बातें उन बातों की महत्ता के हिसाब से अपने माता-पिता से करता हूँ और संतुष्टि ऐसी कि अकथ की ग्लानि का कभी बोध नहीं होता. 

आपका वर्णन सधा हुआ और सात्विक है. 

इस प्रविष्टि हेतु सादर शुभकामनाएँ और हार्दिक बधाइयाँ.

कृपया ध्यान दे...

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