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26 जनवरी 2024 अमृतकाल का 75वा गणतंत्र

भले देख लो जग सारा, सबसे प्यारा देश हमारा.

कण कण में इसके अपनापन, अपना भारत  सबसे न्यारा.

गंगा यमुना सरस्वती जैसे मिल कर संगम हो जाती.

अनेकताएं विविध यहाँ, एक हो हम दम जो जाती.

प्राचीनतम संस्कृति हमारी, सबको समावेशित कर देती.

अपनी पहचान बनाए रख मा, सबको अपना कर लेती.

सदियों आक्रान्ताओं से जूझे हम, नहीं कभी मिटी हस्ती.

है अमरत्व सनातन का, बनी रही अपनी मस्ती.

कालचक्र परिवर्तन में, राजतन्त्र मिट हुआ लोकतंत्र.

अपने शाश्वत मूल्यों से , और भी सशक्त ये गणतंत्र.

विकट चुनौतियाँ सन्मुख हैं, आत्मघाती इस विश्व में.

मांग ये ही, रहें हम सन्नद्ध एक, सदा इस परिवेश में.

निजता संस्कृति की बनाए रखें, बचे रहें वैश्विक फंदों से.

द्वंद्व मुक्त, खुद रहें सावधान भीतर घाती जयचंदों से.

“मौलिक एवं अप्रकाशित रचना”

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Comment by Shyam Narain Verma on February 11, 2024 at 10:51pm
नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर देश भक्ति गीत, हार्दिक बधाई l सादर
जय हिंद

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