दोहा मुक्तक ........
कड़- कड़ कड़के दामिनी, घन बरसे घनघोर । 
   उत्पातों  के  दौर  में, साँस का  मचाए  शोर  ।
        रात   बढ़ी  बढ़ते   गए,  आलिंगन   के   बंध -
           पागल दिल को भा गया , दिल का प्यारा चोर ।
                       * * * * * 
एक दिवानी को हुआ, दीवाने  से  प्यार ।
     पलकों में सजने लगा, सपनों का संसार ।
           गुपचुप-गुपचुप फिर हुए, नैनों में संकेत  - 
                चरम पलों में हो  गए, शर्मीले  अभिसार ।
सुशील सरना / 4-7-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुन्दर मुक्तक हुए हैं । हार्दिक बधाई।
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