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AMAN SINHA's Blog – May 2020 Archive (7)

वो सुहाने दिन

कभी लड़ाई कभी खिचाई, कभी हँसी ठिठोली थी

कभी पढ़ाई कभी पिटाई, बच्चों की ये टोली थी

एक स्थान है जहाँ सभी हम, पढ़ने लिखने आते थे

बड़े प्यार से गुरु हमारे, हम सबको यहाँ पढ़ाते थे

कोई रटे है " क ख ग घ", कोई अंग्रेजी के बोल कहे

पढ़े पहाड़ा कोई यहां पर, कोई गुरु की डाँट सहे 

एक यहां पर बहुत तेज़ था, दूजा बिलकुल ढीला था

एक ने पाठ याद कर लिया, दूजे का चेहरा पीला था

 

कमीज़ तंग थी यहाँ किसी की, पतलून किसी की ढीली…

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Added by AMAN SINHA on May 27, 2020 at 8:06am — 3 Comments

बेगैरत

वो मेरा करीबी था, मैं मगर फरेबी था

इश्क़ वो वफाओं वाली, चाह बन के रह गयी

जो भी सितम हुए, सब मैंने ही सनम किए

टोकड़ी दुआओं वाली, आह बनके रह गयी

 

था मेरा गरूर उसको, मेरा था शुरूर उसको

साथ जब मैंने छोड़ा, आंखे नम रह गयी

सपनों का था  एक क़िला, मिलने का वो सिलसिला

तोड़ा उसके दिल को मैंने, पल मे सारी ढह गयी

वादे उसकी सच्ची थी, मेरी डोर कच्ची…

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Added by AMAN SINHA on May 19, 2020 at 1:46pm — 4 Comments

पश्चाताप

तोड़े थे यकीन मैंने मोहल्ले की हर गली में

सुकून हम कैसे पाते इतनी आहे लेकर

मौत हो जाए मेहरबा हमपे नामुमकिन है

ठोकरे ही हमको मिलेंगी उसके दरवाज़े पर

 

हर परत रंग मेरा यूँ ही उतरता गया 

ज़मी थी शख्त मगर मैं बस धस्ता ही गया

गुनाह जो मैंने किये थे बेखयाली में

याद करके उन सबको मैं बस गिनता ही गया

 

किसी का हाथ छोड़ा किसी का साथ छोड़ दिया

मैंने हर बदनामी को उनकी तरफ मोड़ दिया

सामने जब भी वो आए अपना बनाने के…

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Added by AMAN SINHA on May 17, 2020 at 12:12pm — 2 Comments

बेकार की मनोदशा

जाग जाता हूँ सुबह ही आँख अब लगती नहीं

दिन गुजरता है नहीं और रात कटती ही नहीं

ऐसा लगता है मैं कोई व्यर्थ सा सामान हूँ

है कदर न जिसकी कोई खोया वो सम्मान हूँ

 

प्यार बीवी के नजर में वैसी अब दिखती नहीं

है खफा वो खूब लेकिन मुँह से कुछ कहती नहीं

पहले सी चहरे पे उसके अब हसी दिखती नहीं

मेरी ये उदास आँखे झूठ कह सकती नहीं

 

चिढ़चिढ़ा सा हो गया हूँ बस यु हीं लड़ जाता हूँ

छोटी-छोटी बातों पे मैं बच्चों पे चिल्लाता हूँ

मेरे…

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Added by AMAN SINHA on May 16, 2020 at 6:30am — 5 Comments

पहचाना सा एक चेहरा

वर्षों हुए

एक बार देखे उसको

तब वो पुरे श्रृंगार में होती थी

बात बहुत

करती थी अपनी गहरी आँखों से

शब्द कहने से उसे उलझने तमाम होती थी

 

इमली चटनी

आम की क्यारी

चटपट खाना बहुत पसंद था

सैर सपाटे

चकमक कपडे रंगों का खेल

गाना बजाना हरदम था

 

खेलना कूदना

पढ़ना लिखना सपने सजाना

सब उसके फेहरिस्त का हिस्सा थे

सावन, झूले

नहरों में नहाना, पसंद का खाना

कई तरह के किस्से…

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Added by AMAN SINHA on May 14, 2020 at 3:19pm — 6 Comments

नया सफर

मैं जहाँ  पर खड़ा हूँ वहाँ से हर मोड़ दिखता है

इस जहाँ से उस जहाँ का हरेक छोड़ दिखता है

ये वो किनारा है जहां सब खत्म हुआ समझो

सभी भावनाओं का जैसे अब अंत हुआ समझो

             

दर्द मुझे है बहूत मगर अब उसका कोई इलाज नहीं

मैं ना लगूँ  खुश मगर, मैं किसी से नाराज़ नहीं

मैंने देखा है खुद को उसकी आँखों मे कई दफा मरते हुए

उसने ये सब सहा है, हर बार मगर…

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Added by AMAN SINHA on May 11, 2020 at 9:28am — 3 Comments

दोस्ती

उन गलियों को छोड़ दिया

उन राहों से मुँह मोड़ लिया

अपनी यारी के किस्से जहां

आज भी गूंजा कराती है

 

अब बची रही कुछ खास नहीं

उन उम्मीदों की प्यास नहीं

तेरे घर के चौबारे पर अब भी

आवाज़ जो गूंजा करती है

 

वो जुते  में चिरकुट रखना

पीछे से यूँ पेपर तकना

हिंदी वाली मिस हमेशा

याद अभी भी करती है

 

वो रातों को पढ़ने जाना

एक दूजे के घर चढ़ आना

किताबे पिली पन्नी के अब भी

हर रात वही पर…

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Added by AMAN SINHA on May 2, 2020 at 2:37pm — 5 Comments

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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"जी, सादर आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय."
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"बात तो उचित है. आप संशोधित रचना यहीं, इसी आयोजन में पोस्ट कर दें, आदरणीय."
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय."
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
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अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"रचना पर उपस्थिति तथा मूल्यवान सुझावों के लिए आपका अति आभार है सौरभ जी। आपका मार्गदर्शन तथा प्रशंसा…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी रचना पर उपस्तिथि और सराहना के लिये हार्दिक आभार। "
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