जलता है जिस्म सुर्ख है किंदील के जैसे
इक झील दिन में लगती है किंदील के जैसे
हर शाम उतर आता है ये दरियाओं झीलों पर
मर फ़ासलाई होगी इक खगोलिये इकाई
दिखता भी सुर्ख सुर्ख है घामें लपेटे है
सूरज भी तो जलता है इक किंदील के जैसे
है तीरगी घनी घनी ज़हनों के अंदर तक
सब भूल जायें जात-पात हद-कद और सरहद
सब ख़ाक करके बंदिशें रौशन करें ख़ुद को
मैं भी जलू तू भी जले किंदील के जैसे
चलो मिलके सारे जलते हैं किंदील के जैसे
है धरती के…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 28, 2021 at 10:59am — No Comments
14-12
रास्ते सुनसान और घर, कैद खाने हो गये
खुशनुमा इंसान दहशत, के निशाने हो गये
बेबसी का हाल देखा, दिल दहल कर रह गया
मुफ़्लिसी में ज़िंदगी का, ख़्वाब जल कर रह गया
डर से कोरोना के भी, वो भला अब क्या डरे…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 24, 2021 at 11:30pm — 2 Comments
1222 1222 1222 1222
कफ़स में उम्र गुजरी है परिंदा उड़ न पायेगा
जो तुम आज़ाद भी कर दो घर अपने मुड़ न पायेगा
संभल जाना अगर कोई तुम्हें करने ख़ुदा आये
वगरना ऐसे तोड़ेगा कि दिल फ़िर जुड़ न पायेगा
वो चाहे बेड़ियों से हो या फ़िर की हो किसी दिल से
अगर जो पड़ गई आदत तो बंधन छुड़ न पायेगा
लुटेरे हैं ये सब मुफ़्लिस जो तुम विश्वास दिलाते हो
रिवायत बन गया गर ये भरम फ़िर तुड़ न पायेगा
तमाम आज़ी कुछ आदत…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 24, 2021 at 10:40am — No Comments
22 22 22 22 22 22 22 22
इक रोज़ लहू जम जायेगा इक रोज़ क़लम थम जायेगी
ना दिल से सियाही निकलेगी ना सांस मुझे लिख पायेगी
जिस रोज़ नये लब गाएंगे जिस रोज़ मैं चुप हो जाऊंगा
इक चाँद फ़लक से उतरेगा इक रूह फ़लक तक जायेगी
फिर नये नये अफ़सानों में कुछ नये नये चहरे होंगे
फिर नये नये किरदारों के किरदार नये गहरे होंगे
फिर कोई पिरोयेगा रिश्तों को नये नये अल्फाज़ों में
फिर कोई पुरानी रश्मों को ढालेगा नये रिवाज़ों…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 11, 2021 at 8:00pm — 7 Comments
ज़िंदगी भी मटर के जैसी है
तह खोलो बिखरने लगती है
कितने दाने महफूज़ रहते हैं उन फलियों की आगोशी में
कुछ टेढ़े से कुछ बुचके से कुछ फुले से कुछ पिचके से
हू ब हू रिश्तों के जैसे लगते हैं
कुनबे से परिवारों से कुछ सगे या रिश्तेदारों से
पर सभी आज़ाद होना चाहते हैं कैद से
रिवायतों से बंदिशों से बागवाँ से साजिशों से
ज़िंदगी भी मटर के जैसी है
तह खोलो बिखरने लगती है
(मौलिक व अप्रकाशित)
आज़ी तमाम
Added by Aazi Tamaam on April 8, 2021 at 2:00pm — 4 Comments
कोई ख़्वाब न होता आँखों में
कोई हूक न उठती सीने में
कितनी आसानी होती
या रब तन्हा जीने में
दिल जब से टूटा चाहत में
रिंद बने पैमानों के
ढलते ढलते ढल गई
सारी उम्र गुजर गई पीने में
यूँ ही सांसें लेते रहना
यूँ ही जीते रहना बस
हर दिन साल के जैसा 'गुजरा
हर इक साल महीने में
दुनिया डूबी लहरों में
हम डूबे यार सफ़ीने में
देखीं कैसी कैसी बातें
अज़ब ग़ज़ब दुनियादारी
वो कितने ना पाक…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 8, 2021 at 11:30am — 2 Comments
2122 1122 2112 2122
जैसे जैसे ही ग़ज़ल रूदाद ए कहानी पड़ेगी
वैसे वैसे ही सनम दिल की फज़ा धानी पड़ेगी
रश्म हर दिल को महब्बत में ये उठानी पड़ेगी
दिल जलाकर भी कसम दिल से ही निभानी पड़ेगी
ख़ुश न होकर भी ख़ुशी दिल में है दिखानी पड़ेगी
कुछ न कहकर भी रज़ा दिल की यूँ सुनानी पड़ेगी
हुस्न वालो की सुनो ना ख़ुद पे भी इतना इतराओ
लम्हा दर लम्हा महंगी तुम्हें न'दानी…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 7, 2021 at 3:00pm — 4 Comments
2212 2212 2222 2
मुझको तेरी आवाज़ से खुशबू आती है
तेरे हर इक अल्फाज़ से खुशबू आती है
आँचल से जैसे इत्र सा झरता रहता है…
Added by Aazi Tamaam on April 7, 2021 at 8:00am — 4 Comments
2122 1212 22/112
रोयेंगे और मुस्कुरायेंगे
उम्र भर तुम को गुनगुनायेंगे
तुम जो रहते हो बादलों में सनम
तुम को हम कैसे भूल पायेंगे
जब भी देखेंगे आसमानों को
दिल के अरमाँ मचल ही जायेंगे
ग़म की आँधी न रोक पायेंगे
अश्क आँखों से बहते जायेंगे
कैसे रोकेंगे हसरतें दिल की
चीख कर तुम को फ़िर बुलायेंगे
जी न पायेंगे मर न पायेंगे
दिल जलायेंगे…
Added by Aazi Tamaam on April 5, 2021 at 11:00am — No Comments
2122 1212 22
कोई समझाए माजरा क्या है
तीरगी क्या है यूँ कि रा क्या है
मिटना हर शय का तो मुअय्यन है
ज़िंदगानी में निर्झरा क्या है
इक समंदर के जैसे लगती हैं
नम सी आँखों में दिल भरा क्या है
टूट कर ख़्वाब गिरते रहते हैं
आँख में आईना सरा क्या है
देख कर उनको आरज़ू करना
दिल की हसरत का दिलबरा क्या है
इश्क़ में रूह गर जो महके, तो
मुश्क़ फ़िर क्या है मोगरा क्या…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on March 22, 2021 at 5:30pm — 4 Comments
2122 1212 22
देख कर मुस्कुराना शर्माना
इश्क़ समझे न कोई दीवाना
है कयामत हर इक अदा इनकी
जुल्फ़ें बिखराना हो या झटकाना
सिर्फ़ आता है इन हसीनों को
दिल चुराना चुरा के ले जाना
क्यों किसी का यूँ दिल जलाते हो
क्यों बनाते हो यूँ ही दीवाना
कितना मुश्किल है चाहतों में सनम
पास रहकर भी दूर हो जाना
बेक़रारी में आहें भरता है
जी न पाता है कोई दीवाना
साल हा साल लम्हा…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on March 16, 2021 at 9:00pm — 11 Comments
2122 1212 22
बे सबब हाव-हू सी रहती है
दाँव पर आबरू सी रहती है
इश्क़ जब भी किसी से होता है
इक अजब जुस्तजू सी रहती है
लम्हा दर लम्हा दिल मचलता है
हर पहर आरज़ू सी रहती है
यूँ लगे की हर एक चहरे पर
सूरत इक हू-ब-हू सी रहती है
मन भटकता है वन हिरन बनकर
खुशबु इक रू-ब-रू सी रहती है
ख़ुद से ही अब वो बात करता है
दिल में इक गुफ़्तगू सी रहती है
जलके सब ख़ाक हो…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on March 11, 2021 at 1:00pm — 7 Comments
अरकान- 2122 1212 22
सिर्फ़ इतना हुनर जो पा जाते
काश हम भी किसी के हो पाते
क्यों तुम्हें इतनी जल्दी रहती है
मेरी सुनते कुछ अपनी फ़रमाते
हर किसी से अदब से मिलते हो
अच्छा होता जो थोड़ा इतराते
चारा गर ही हमारा रूठा है
हम किसे ज़ख़्म अपने दिखलाते
फ़िर कहाँ कोई दिल में यूँ चुभता
गर जो रिश्ता सभी से तोड़ आते
चाहतों में भी यूँ तो दीवाने
जी ही पाते हैं की न मर…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on March 7, 2021 at 1:30pm — 4 Comments
2211 2122 1221 1222 12
चाहत में सिवा ही चाहत के क्या क्या न सनम हमको मिला
हर जख्म मिला है दिल को यूँ मरहम न सनम हमको मिला
किस को है पता यहाँ कौन कब हो जाये यूँ ही बे-वफ़ा
हम जान लुटा आये अपनी फिर भी न सनम हमको मिला
ता उम्र लगा रहा इश्क में भी यूँ तो मिलना बिछड़ना
मिलके न जुदा हो पर कोई ऐसा न सनम हमको मिला
थोड़ा तो क़रार आये या रब इस दिल ए बेजार को
थोड़ा भी सुकूँ गो चाहत में आखिर न सनम हमको…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on March 5, 2021 at 10:00pm — 2 Comments
22 22 22 22 22 22 22 22
जब तन्हाई में यादों की बरसात ठहर सी जाती है
इक हूक सी उठती है दिल में ह'यात ठहर सी जाती है
चुपके चुपके आँखों ही आँखों में इश्क़ जवाँ होता है
गर जुम्बिश ना हो आँखों में शुरुआत ठहर सी जाती है
हर पल मिलने की चाहत में पल पल बेताबी रहती है
दिन ढलते ढलते ढल जाता है रात ठहर सी जाती है
होठों पर बात न आ जाये दिल बेचैनी में रहता है
होठों पर आते ही दिल की हर बात ठहर सी जाती है
रह रह कर आहें…
Added by Aazi Tamaam on March 2, 2021 at 9:30pm — No Comments
1212 222 212
चढ़ान में भी कोई क्यों रहे
ढलान में भी कोई क्यों रहे
सियासती हो रंग ए आसमाँ
उड़ान में भी कोई क्यों रहे
दुकान-ए-दिल ही जब हो लुट चुकी
अमान…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on March 1, 2021 at 10:30am — No Comments
बह्र - मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम
अरकान - 122 122 122 122
किसी को मुकम्मल जहाँ देने वाले
किसी को नया आसमां देने वाले
**
कि बहती हवा…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on February 17, 2021 at 4:30am — 3 Comments
बह्र ~ "बह्र-ए- वाफिर मुरब्बा सालिम"
12112 12112 12112 12112
न चैन पाये है की न सुकूँ .....................ही पाये कोई
ऐसे ले के दर्द ए दिल है जिये.................ही जाये कोई
के चोट जो खाये अपनो से ही ...............अगर
तो ले के भी दिल को अपने कहाँ.............ही जाये कोई
अज़ीब है हाल इश्क में भी.....................सनम है न दवा दिल…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on February 16, 2021 at 10:00am — No Comments
122 2122 2122 2122 2
उखाड़ेंगीं भी क्या मिलकर हज़ारों आँधियाँ अपना
पहाड़ों से भी ऊँचा सख़्सियत का है मकां अपना
मिटाकर क्या मिटायेगा कोई नाम-ओ-निशाँ अपना
मुक़ाम ऐसा बनाएंगे ज़मीं पर मेरी जाँ अपना
चला है गर चला है डूबकर मस्ती में कुछ ऐसे
नहीं रोके रुका है फिर किसी से कारवाँ अपना
पहुँचने में जहाँ तक घिस गये हैं पैर लोगों के
वहाँ हम छोड़ आये हैं बनाकर आशियाँ…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on February 15, 2021 at 3:30pm — 3 Comments
21 21 21 21 2
एक और दास्तां सुनो
एक और खूँ चकां हुई
एक और दर्द बड़ गया
एक और राज़दाँ हुई
एक और दाग लग गया
एक और जाँ निहाँ हुई
एक और रूह जम गई
एक और ख़त्म जाँ हुई
एक और आग लग गई
एक और लौ तवाँ हुई
एक और फूल आ गया
एक और सब्ज माँ हुई
एक और हादसा हुआ
एक और बे अमाँ हुई
एक और बचपना गया
एक और रूह जवाँ हुई
एक और…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on February 14, 2021 at 8:27pm — No Comments
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