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Sushil Sarna's Blog (876)

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार

 

माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार ।

संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार ।। 

 

हार सदा ही जीत का, करती मार्ग प्रशस्त ।

डरा हार से जो हुआ, उसका सूरज अस्त ।।

 

जीत हार के राग  में, उलझा जीवन गीत ।

दूर -दूर तक जिंदगी, ढूँढे सच्चा मीत ।।

 

कभी हार है जिंदगी, कभी जिंदगी जीत ।

जीवन भर होता ध्वनित, इसमें गूँथा गीत ।।

 

मतलब होता हार का, फिर से एक प्रयास ।

हर कोशिश में जीत की,…

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Added by Sushil Sarna on January 16, 2025 at 3:00pm — 2 Comments

शर्मिन्दगी - लघु कथा

शर्मिन्दगी ....

"मैने कहा, सुनती हो ।"रामधन ने अपनी पत्नी को आवाज देते हुए कहा ।

"क्या हुआ, कुछ कहो तो सही ।"

"अरे होना क्या है । अपने पड़ोसी रावत जी की बेटी संजना ने अपने ब्वाय फ्रेंड के साथ भाग कर कोर्ट मैरिज करके इस उम्र में अपने माँ-बाप को शर्मसार कर दिया ।बेचारे! अच्छा हुआ, अपनी कोई बेटी नही केवल एक बेटा राहुल है ।" रामधन ने कहा।

इतने में डोर बेल बजी टननन ।

"कौन? " रामधन जी दरवाजे खोलते हुए बोले ।

" रामधन जी, अपने संस्कारवान बेटे को…

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Added by Sushil Sarna on January 15, 2025 at 1:12pm — 6 Comments

दोहा सप्तक. . . पतंग

दोहा सप्तक . . . . पतंग

आवारा मदमस्त सी, नभ में उड़े पतंग ।

बीच पतंगों के लगे, अद्भुत दम्भी जंग ।। 

 

बंधी डोर से प्यार की, उड़ती मस्त पतंग ।

आसमान को चूमते, छैल-छबीले रंग ।।

 

कभी उलझ कर लाल से, लेती वो प्रतिशोध ।

डोर- डोर की रार का, मन्द न होता क्रोध ।।

 

नीले अम्बर में सजे, हर मजहब के रंग ।

जात- पात को भूलकर, अम्बर उड़े पतंग ।।

 

जैसे ही आकाश में, कोई कटे पतंग ।

उसे लूटने के लिए, आते कई दबंग…

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Added by Sushil Sarna on January 14, 2025 at 8:30pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . .जीवन

दोहा पंचक. . . . जीवन

पीपल बूढ़ा हो गया, झड़े पीत सब पात ।

अपनों से मिलने लगे, घाव हीन आघात ।।

ठहरी- ठहरी  जिन्दगी, देखे बीते मोड़ ।

टीस छलकती आँख से,पल जो आए छोड़ ।।

विचलित करता है सदा, सुख का बीता काल ।

टूटे से जुड़ती नहीं, कभी वृक्ष से डाल ।।

अपने ही देने लगे, अब अपनों को मात ।

मिलती है संसार में, आँसू की सौग़ात ।।

पल - पल ढलती जिंदगी, ढूँढे अपना छोर ।

क्या जाने किस साँस की, अन्तिम होगी भोर ।।

सुशील सरना / 3-1-25

मौलिक एवं…

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Added by Sushil Sarna on January 3, 2025 at 8:30pm — No Comments

दोहा पंचक. . . संघर्ष

दोहा पंचक. . . संघर्ष

आज पुराना हो गया, कल का नूतन वर्ष ।

फिर रोटी के चक्र में, डूबा सारा हर्ष ।।

नया पुराना एक सा, निर्धन का हर वर्ष ।

उसके माथे तो लिखा, रोटी का संघर्ष ।।

ढल जाता है साँझ को, भोर जनित उत्साह ।

लेकिन रहती एक सी, दो रोटी की चाह ।।

किसने जाना काल का, कल क्या होगा रूप ।

सुख की होगी छाँव या, दुख की होगी धूप ।।

चार घड़ी का हर्ष फिर , बीता नूतन वर्ष ।

अविरल चलता है मगर, जीवन का संघर्ष ।।

सुशील सरना /…

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Added by Sushil Sarna on January 2, 2025 at 2:52pm — No Comments

दोहा पंचक. . . रोटी

दोहा पंचक. . . रोटी

सूझ-बूझ ईमान सब, कहने की है बात ।

क्षुधित उदर के सामने , फीके सब जज्बात ।।

मुफलिस को हरदम लगे, लम्बी भूखी रात ।

रोटी हो जो सामने, लगता मधुर प्रभात ।।

जब तक तन में साँस है, चले क्षुधा से जंग ।

बिन रोटी फीके लगें, जीवन के सब रंग ।।

मान-प्रतिष्ठा से बड़ी, उदर क्षुधा की बात ।

रोटी के मोहताज हैं, जीवन के हालात ।।

स्वप्न देखता रात -दिन, रोटी के ही दीन ।

इसी जुगत में दीन यह , हरदम रहता लीन…

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Added by Sushil Sarna on December 25, 2024 at 2:37pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक. . .

बाण न आये लौट कर, लौटें कभी न प्राण ।

काल गर्भ में है छुपा, साँसों का निर्वाण ।।

नफरत पीड़ा दायिनी, बैर भाव का मूल ।

जीना चाहो चैन से, नष्ट करो यह शूल ।।

आभासी संसार में, दौलत बड़ी महान ।

हर कीमत पर बेचता , बन्दा अब  ईमान ।।

अन्तर्घट के तीर पर, सुख - दुख करते वास ।

सूक्ष्म सत्य है देह में, वाह्य जगत  आभास ।।

जीवन मे  होता नहीं, जीव कभी संतुष्ट ।

सब कुछ पा कर भी सदा, रहे ईश से रुष्ट ।।

सुशील सरना /…

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Added by Sushil Sarna on December 23, 2024 at 2:42pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . .व्यवहार

दोहा पंचक. . . व्यवहार

हमदर्दी तो आजकल, भूल गया इंसान ।

शून्य भाव के खोल में, सिमटा है नादान ।।

मुँह बोली संवेदना, मुँह बोला व्यवहार  ।

मुँह बोले संसार में, मुँह बोला है प्यार ।।

भूले से तकरार में, करो न  ऐसी बात ।

जीवन भर देती रहे, वही बात आघात ।।

अन्तस में कुछ और है, बाहर है कुछ और ।

उलझन में यह जिंदगी, कहाँ सत्य का ठौर ।।

दो मुख का यह आदमी, क्या इसका विश्वास ।

इसके अंतर में सदा, छल करता है वास ।।

सुशील सरना /…

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Added by Sushil Sarna on December 21, 2024 at 3:36pm — No Comments

दोहा पंचक. . . दिन चार

दोहा पंचक. . . . दिन चार

निर्भय होकर कीजिए, करना है जो काम ।

ध्यान रहे उद्वेग में, भूल न जाऐं राम ।।

कितना अच्छा हो अगर, मिटे हृदय से बैर ।

माँगें अपने इष्ट से, सकल जगत् की खैर ।।

सच्चे का संसार में, होता नहीं  अनिष्ट ।

रहता उसके साथ में, उसका  अपना  इष्ट ।।

पर धन विष की बेल है, रहना इससे दूर ।

इसकी चाहत के सदा, घाव बनें  नासूर ।

चादर के अनुरूप ही, अपने पाँव पसार ।

वरना फिर संघर्ष में, बीतेंगे दिन चार ।।

सुशील सरना…

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Added by Sushil Sarna on December 20, 2024 at 3:49pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . .शीत शृंगार

दोहा पंचक. . . शीत शृंगार



नैनों की मनुहार को, नैन करें स्वीकार ।

प्रणय निवेदन शीत में, कौन करे इंकार ।।

मीत करे जब प्रीति की, आँखों से वो बात ।

जिसमें बीते डूबकर,  आलिंगन में रात ।।

अभिसारों में व्याप्त है, मदन भाव का ज्वार ।

इस्पर्शों के दौर में, बिखरा हरसिंगार ।।

बढ़े शीत में प्रीति की, अलबेली सी प्यास ।

साँसें करती मौन में, फिर साँसों से रास ।।

अंग-अंग में शीत से, सुलगे प्रेम अलाव ।

प्रेम क्षुधा के वेग में, बढ़ते गए कसाव…

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Added by Sushil Sarna on December 18, 2024 at 8:19pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . .यथार्थ

दोहा पंचक. . . . यथार्थ

मन मंथन करता रहा, पाया नहीं  जवाब ।

दाता तूने सृष्टि की, कैसी लिखी किताब।।

आदि - अन्त की जगत पर, सुख - दुख करते रास ।

मिटने तक मिटती नहीं, भौतिक सुख की प्यास ।।

जीवन जल का बुलबुला, पल भर में मिट जाय ।

इससे बचने का नहीं, मिलता कभी उपाय ।।

साँसों के अस्तित्व का, सुलझा नहीं सवाल ।

दस्तक दे आता नहीं, क्रूर नियति का काल ।।

साम दाम दण्ड भेद सब, कितने करो प्रपंच ।

निश्चित तुमको छोड़ना, होगा जग का मंच…

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Added by Sushil Sarna on December 10, 2024 at 1:39pm — 4 Comments

कुंडलिया. . . .

कुंडलिया. . . . 

बच्चे अन्तर्जाल पर , भटक  रहे  हैं  आज ।
दुर्व्यसन   में   भूलते, जीवन  की  परवाज ।
जीवन की परवाज , लक्ष्य यह भूले अपना ।
बिना कर्म यह अर्थ , प्राप्ति का देखें सपना ।
जीवन   से  अंजान, उम्र  से  हैं  यह  कच्चे ।
आज  नशे   में   चूर , भटकते  देखे   बच्चे ।

सुशील सरना / 8-12-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on December 8, 2024 at 8:00pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . कागज

दोहा पंचक. . . कागज

कागज के तो फूल सब, होते हैं निर्गंध ।

तितली को भाते नहीं, गंधहीन यह बंध ।।

कितनी बेबस लग रही, कागज की यह नाव ।

कैसे हो तूफान में,साहिल पर ठहराव ।।

कागज की कश्ती चली, लेकर कुछ अरमान ।

रेजा - रेजा कर गया , स्वप्न सभी तूफान ।।

कैसी भी हो डूबती, कागज वाली नाव ।

हृदय विदारक दृश्य से, नैनों से हो स्राव ।

कागज पर लिख डालिए, चाहे जितने भाव ।

कागज कभी न भीगता, कितने ही हों घाव ।।

सुशील सरना /…

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Added by Sushil Sarna on December 3, 2024 at 8:57pm — 4 Comments

कुंडलिया ....

कुंडलिया. . . . 

मीरा को गिरधर मिले, मिले  रमा को  श्याम ।
संग   सूर  को  ले  चले, माधव  अपने  धाम ।
माधव  अपने धाम , भक्ति की अद्भुत  माया ।
हर मुश्किल में साथ, श्याम की चलती छाया ।
भजें  हरी  का  नाम , साथ  में  बजे  मँजीरा ।
भक्ति भाव  में डूब, रास  फिर  करती  मीरा ।

सुशील सरना / 1-12-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on December 1, 2024 at 9:10pm — 4 Comments

दोहा सप्तक. . . विरह

दोहा सप्तक. .. . विरह

देख विरहिणी पीर को, बाती हुई उदास ।

गालों पर रुक- रुक बही , पिया मिलन की आस ।।

चैन छीन कर ले गया, परदेसी का प्यार ।

आहट उसकी खो गई, सूना लगता द्वार ।।

जलती बाती से करे, शलभ अनोखा प्यार ।

जल कर उसके प्यार में, तज देता संसार ।।

तिल- तिल तड़पे विरहिणी, कहे न मन की बात ।

आँखों से झर - झर बहें, प्रीति जनित आघात ।।

पिया मिलन में नींद तो, रहे नयन से दूर ।

पिया दूर तो भी नयन , जगने को मजबूर ।।

बड़ा अजब है…

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Added by Sushil Sarna on November 27, 2024 at 4:13pm — 2 Comments

दोहा सप्तक. . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविध

मौन घाट मैं प्रेम का, तू चंचल जल धार ।

कैसे तेरे वेग से, करूँ अमर अभिसार ।।

जब आती हैं आँधियाँ, करती घोर विनाश ।

अपनी दम्भी धूल से, ढक देती आकाश ।।

मैं मेरा की रट यहाँ, गूँज रही हर ओर ।

निगल न ले इंसान को,और -और का शोर ।।

किसको अपना हम कहें, किसको मानें गैर ।

अपनेपन की आड़ में, लोग निकालें बैर ।।

अर्थ बिना संसार में, सब कुछ लगता व्यर्थ ।

आभासी दुश्वारियाँ, केवल हरता  अर्थ ।।

कल ही कल की सोच में,…

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Added by Sushil Sarna on November 25, 2024 at 5:00pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . .शीत

दोहा पंचक. . . . शीत

अलसायी सी गुनगुनी , उतरी नभ से धूप ।

बड़ा सुहाना भोर में, लगता उसका रूप ।।

धुन्ध चीर कर आ गई, आखिर मीठी धूप ।

हाथ जोड़ वंदन करें, निर्धन हो या भूप ।।

शीत ऋतु में धूप से , मिले मधुर आनन्द ।

गरम-गरम हो चाय फिर , रचें प्रेम के छन्द ।।

शीत भोर की धुंध में, ठिठुर रही है धूप ।

शरमाता है शाल में, गौर वर्ण का रूप ।।

धुन्ध भयंकर साथ फिर, शीतल चले बयार ।

पहन चुनरिया ओस की,  भोर  करे शृंगार ।।

सुशील सरना /…

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Added by Sushil Sarna on November 20, 2024 at 3:55pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . .मतभेद

दोहा पंचक. . . . मतभेद

इतना भी मत दीजिए, मतभेदों को तूल ।

चाट न ले दीमक सभी , रिश्ते कहीं समूल ।।

मतभेदों को भूलकर, प्रेम करो जीवंत ।

एक यही माधुर्य बस , रहे श्वांस पर्यन्त ।।

रिश्तों के माधुर्य में , बैरी हैं मतभेद ।

सम्बन्धों का टूटना, मन में भरता खेद ।।

मतभेदों की किर्चियाँ, चुभतीं जैसे शूल ।

सम्बन्धों के नाश का, है यह कारण मूल ।।

जितना जल्दी भूलते , मतभेदों को लोग ।

जीवन के आनन्द का, उतना करते भोग ।।

सुशील सरना…

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Added by Sushil Sarna on November 19, 2024 at 2:51pm — 2 Comments

रोला छंद. . . .

रोला छंद . . . .

हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।

सदा सत्य के साथ , राह  पर  चलते  रहना ।

पथ में  अनगिन  शूल , करेंगे   पैदा   बाधा ।

जीवन का संकल्प , छोड़ना कभी न आधा ।

***

जब तक तन में साँस , बहे यह   जीवन   धारा ।

विपदाओं  से  यार, भला   कब   जीवन   हारा ।

सुख - दुख का यह चक्र , सदा से चलता आया ।

उस दाता के खेल,  जीव यह  समझ  न   पाया ।

***

जब होता  अवसान ,मृदा  में  मिलती  काया ।

जब तक चलती साँस , साथ में चलती छाया ।

भोगों…

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Added by Sushil Sarna on November 15, 2024 at 12:43pm — No Comments

रोला छंद. . . .

रोला छंद . . . .

हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।

सदा सत्य के साथ , राह  पर  चलते  रहना ।

पथ में  अनगिन  शूल , करेंगे   पैदा   बाधा ।

जीवन का संकल्प , छोड़ना कभी न आधा ।

***

जब तक तन में साँस , बहे यह   जीवन   धारा ।

विपदाओं  से  यार, भला   कब   जीवन   हारा ।

सुख - दुख का यह चक्र , सदा से चलता आया ।

उस दाता के खेल,  जीव यह  समझ  न   पाया ।

***

जब होता  अवसान ,मृदा  में  मिलती  काया ।

जब तक चलती साँस , साथ में चलती छाया ।

भोगों…

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Added by Sushil Sarna on November 15, 2024 at 12:42pm — 2 Comments

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