दोहा पंचक. . . . शृंगार
बात हुई कुछ इस तरह, उनसे मेरी यार ।
सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार ।।
मौसम की मनुहार फिर, शीत हुई उद्दंड ।
मिलन ज्वाल के वेग में, ठिठुरन हुई प्रचंड ।
मौसम आया शीत का, मचल उठे जज्बात ।
कैसे बीती क्या कहें, मदन वेग की रात ।।
स्पर्शों की आँधियाँ, उस पर शीत अलाव ।
काबू में कैसे रहे, मौन मिलन का भाव ।।
आँखों -आँखों में हुए, मधुर मिलन संवाद ।
संवादों के फिर किए , अधरों ने अनुवाद ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 16, 2025 at 7:43pm — No Comments
दोहा दशम्. . . . निर्वाण
कौन निभाता है भला, जीवन भर का साथ ।
अन्तिम घट पर छूटता, हर अपने का हाथ ।।
तन में चलती साँस का, मत करना विश्वास ।
साँसें तन की जिंदगी, तन साँसों का दास ।।
साँसों की यह डुगडुगी, बजती है दिन-रात ।
क्या जाने कब नाद यह, दे जीवन को मात ।।
मौन देह से सूक्ष्म का, जब होता निर्वाण ।
अनुत्तरित है आज तक , कहाँ गए वह प्राण ।।
तोड़ देह प्राचीर को, सूक्ष्म चला उस पार ।
मौन देह के साथ तो, बस काँधे थे चार…
Added by Sushil Sarna on November 5, 2025 at 9:00pm — No Comments
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