For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Pushyamitra Upadhyay's Blog – October 2012 Archive (4)

उन से कह दो खतों में महक ना रखें

उन से कह दो खतों में महक ना रखें

मेरी चाहत पे इतना भी शक ना रखें



चाँद छुप जाएगा रात रुक जायेगी

अपनी आँखों में इतनी चमक ना रखें



जिक्र उसका चले, हाल पूछें मेरा

मेरे जख्मों पे ऐसे नमक ना रखें



मेरा बनना है उनको तो बन जायें वो

मेरे बन जायें तो मुझ पे हक ना रखें



दीद-ऐ-महबूब जितना मिला लूट लें

और उम्मीद फिर मौत तक ना रखें



चाँद ने खुद् निहारा जो शब् भर हमें

क्यों कदम फिर हमारे बहक ना रखें



मैं भी लो छोड़ दूं जिक्र शहनाई…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on October 20, 2012 at 10:19pm — 1 Comment

है भीतर कुछ ऐसा बैठा

देखा है कई बार

अनीति के बढ़ते क़दमों को

शिखर तक जाते हुए

देखा है कई बार

दुष्टों को....सूर्य पर मंडराते हुए



किन्तु कभी नहीं सोचा

कि होकर शामिल उनमें

मैं भी पाऊं सामीप्य गगन का/



ना ही सोचा कि मैं छोडूं

धरा नीति की

और विराजूं उड़ते रथ में/

है भीतर कुछ ऐसा बैठा

देता नहीं भटकने पथ में/

हे ईश् मेरे कहीं वो तुम तो नहीं



देखा है कई बार

सत्य को युद्धरत/

क्षत विक्षत...आहत/

सांस तक लेने के…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on October 17, 2012 at 10:23pm — 4 Comments

सफ़ेद गुलाब

यूं ही तोड़ लिया था उस दिन,

एक सफ़ेद गुलाब बागीचे से,

मैंने तुम्हारे लिए/

कि सौंप कर तुम्हें..

तुमसे सारे भाव मन के

कह दूंगा,

नीली नीली स्याही सा

कोरे कागज़ पर बह दूंगा/

हो जाऊँगा समर्पित ,

पुष्प की तरह/

फिर तुम ठुकरा देना

या अपना लेना/

मगर फिर तुम्हारे सामने...

शब्द रुंध गये/

स्याही जम गयी/

धडकनें बढ़ गयीं/

सांस थम गयी/

मैं असमर्थ था ..

तुम्हरी आँखों के सुर्ख सवालों,

का उत्तर देने में/

या कि उस लिखे हुए उत्तर के…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on October 11, 2012 at 9:12am — 10 Comments

न जाने कब छुआ था कागज़ का बदन स्याही से मैंने

न जाने कबसे,

जारी है ये वहशत/

ये खिलवाड़ लफ़्ज़ों से,

न जाने कब छुआ था,

कागज़ का बदन स्याही से मैंने?



उसके जाने के बाद तो नहीं!

उसके मिलने से पहले भी नहीं!

वहशत है तो,

आगाज़ खुशियों से हुआ होगा/

शायद तब...जब

उसने नज़रों से छुआ होगा/

लब्ज़ बस रास्ते ही होंगे,

मंजिल बस वो होगी,

अहसास बेताब होंगे/

हसरतें मचतली होंगी/

दिल बहकता होगा,

धडकनें संभलती होंगी/

बहुत वक़्त बीत गया है

बहुत सफ़र बीत गया है

याद भी नहीं मुझे

न…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on October 4, 2012 at 10:32pm — 4 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
10 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
11 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service