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DEEP ZIRVI's Blog – July 2012 Archive (6)

राखी .

मानो तो रूह क़ा नाता है जी ये राखी

न मानो कच्चा धागा है जी ये राखी .

 

जो राखी को दम्भ-आडम्बर मानते हैं ;

उन का मन भी तो अपनाता है ये राखी .

 

बहना के मन से उपजी हर इक दुआ है ये ;

भाई-बहन से बंधवाता है ये राखी .

 

सभ्य समाज की नींव के पत्थर नातों का…

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Added by DEEP ZIRVI on July 27, 2012 at 7:00pm — 1 Comment

रिश्ते...

उगते रिश्ते ,ढलते रिश्ते ;

रुकते रिश्ते चलते रिश्ते .

मन के रिश्ते मन से रिश्ते

तन के रिश्ते तन से रिश्ते

अपने रिश्ते बनते रिश्ते

सपने रिश्ते तनते रिश्ते .

उसके रिश्ते इसके रिश्ते

रिसते रिश्ते ,घिसते रिश्ते .

शासक रिश्ते शासित रिश्ते ,

बेदम रिश्ते ,बा-दम रिश्ते .

रिश्ते नीरज ,नीरस रिश्ते

रिश्ते सुधा कहीं गरल रिश्ते .

आंगन रिश्ते उपवन रिश्ते ,

हैं धरा जलद गगन रिश्ते .

रिश्ते पूनम क़ा चाँद भी हैं ,

तारे नयनाभिराम भी…

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Added by DEEP ZIRVI on July 24, 2012 at 6:30am — 2 Comments

भूखे को तो चंदा में रोटी दीखे;

रोती रोटी  क्यों रो रही ,कर लो बात ,

रोटी रोटी क्यों हो रही ,कर लो बात;'



तरकारी के भाव चले विन्ध्याचल को

तन्हा रोटी यों रो रही ,कर लो बात .



धान ज्वारी मक्का बासमती पेटेंट ;

नयनन जल रोटी ले रो रही कर लो बात.



भूखे को तो चंदा में रोटी दीखे;

चंदा रोटी एक हो रही ? कर लो बात .



रात को खा के सोए सुबह पेट ;

रोटी रोटी देख हो रही कर लो बात .



तीरों तलवारों से न टूटे छल बल से ;

टूटे भूखे पेट वो…

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Added by DEEP ZIRVI on July 17, 2012 at 5:30pm — 1 Comment

हास्य कविता

अंधी पीसे कुत्ता खाए, खाने दो .
मत भेजे पे बोझा भेजो जाने दो .

बेईमान का भाव करोड़ों में , देखो .
और ईमान का मोल नही है आने दो .

कुतर कुतर कर मुल्क स्वार्थी चूहों ने .
खा जाना है, खा जाते हों खाने दो .

कालिमा कालिमा ही बस फैली है .
दीप बुझाओ रौशनी को मत आने दो .

अपने कल को दे के विष अपने हाथों .
घोडे बेच के आत्मा को सो जाने दो .
.
दीप ज़िर्वी
11.7.२०१२

Added by DEEP ZIRVI on July 12, 2012 at 2:30pm — 4 Comments

खजाना खाली है

कहती है सरकार ,खजाना खाली है
बेकल बेरोजगार खजाना खाली है

बिना विभाग के मंत्री पद निर्माण करें ;
जनता के लिए यार ,खजाना खाली है .

अपने हक जो मांगे उन को पीटो बस;
कर लो गिरफ्तार ,खजाना खाली है .

सी .एम् पुत्र तो सी. एम् ही बन जाना है
काहे की तकरार ,खजाना खाली है .

वोटें हैं ,मेहनत हैं ,या फिर जेबें हैं ;
इन की क्यों सोचें यार ,खजाना खाली है .


दीप जीर्वी

Added by DEEP ZIRVI on July 11, 2012 at 7:48pm — 9 Comments

चलो जी चलो कलम उठाएं.चलो जी चलो कलम उठाएं.

चलो  जी चलो कलम उठाएं;चलो  जी चलो कलम उठाएं.

लिख के कविता लेख कहानी,हम लेखक बन जाएं

तदुपरांत वो बकरा ढूंढें जिसको लिखा सुनाएं

चलो  जी चलो कलम उठाएं.चलो  जी चलो कलम उठाएं.

-०-०-०--०-०-०-०-०-०-०-०-

कागज़ कलम ; डाक खर्चे की ;पहले युक्ति लगाएं,

लिख लिख रचनाएँ अपनी ;अख़बारों को भिजवाएं .…

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Added by DEEP ZIRVI on July 2, 2012 at 8:32am — 6 Comments

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