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Sushil Thakur's Blog – July 2013 Archive (5)

राह के वो हाशिये थे.....

राह के वो हाशिये थे एक पल में हट गये 

रास्ते चौड़े हुए तो पेड़ सारे कट गये 



एक है चेहरा हमारा और खूं का रंग भी 

क्या रही मज़बूरी जो हम मज़हबों में बंट गये 



ग़मज़दा हूँ मैं कि मेरे पैर में जूते नहीं 

क्या गुज़रती होगी उसपे पांव जिसके कट गये 



न रहे दादा न दादी जो रटाये राम- राम 

देखकर माहौल घर का, तोते गाली रट गये 



रिज्क़ की तंगी कुछ ऐसी हो गई अब गाँव में 

औरतें तो रह गईं पर मर्द काफी घट गये 



ज़िन्दगी के…

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Added by Sushil Thakur on July 11, 2013 at 4:00pm — 6 Comments

यूं ही बचपन गया शरारत में

यूं  ही बचपन गया शरारत  में

औ' जवानी गयी  मुहब्बत  में

और जो वक़्त जिंदगी के बचे

वो भी गुज़रे फ़क़त तिजारत में  



बादे मुश्किल मिले जो पल वो भी

हो गए रायगाँ शिकायत में

मुफ्लिसों को भला  बुरा  कहना

है शुमार आज सबकी आदत में



फूल बेलपत्र के अलावा शिव

जान  मांगे है अब ज़ियारत में



फ़ासला तू औ' मैं का जब न मिटे

तो मज़ा ख़ाक है मुहब्बत में



गाँव से वो कपास की कतरन

जाके चुनता है शह्रे सूरत…

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Added by Sushil Thakur on July 6, 2013 at 5:00pm — 5 Comments

ग़ज़ल - आया था लुत्फ़ लेने नवाबों के शह्र में

आया था लुत्फ़ लेने नवाबों के शह्र में

हैरतज़दा खड़ा हूँ नक़ाबों के शह्र में

आलूदा है फज़ाए बहाराँ भी इस क़दर

खुशबू नहीं नसीब गुलाबों के शह्र में

तहज़ीबे कोहना और तमद्दुन नफासतें

आया हूँ सीखने में नवाबों के शह्र में

ऐसी हसीं वरक़ को यहाँ देखता है कौन

हर सम्त जाहेलां है किताबों के शह्र में

बेहोश होने का न गुमां हमको हो सका

हर शख्स होश में है शराबों के शह्र में

चेहरे पे सादगी है तो जुल्फें…

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Added by Sushil Thakur on July 4, 2013 at 10:30pm — 13 Comments

तरही ग़ज़ल (अभी कुछ और करिश्में ग़ज़ल के देखते हैं)

हम अपने प्यार का लहजा बदल के देखते हैं 
तुम्हारी तर्ज़े अदा में भी ढल के देखते हैं 
.
तुम अपनी तल्ख़ ज़ुबां में जो शीरिनी लाओ 
तो हम भी क़ैदे अना से निकल के देखते हैं 
.
वो  दौर और था जब रूह की गिज़ा थी ग़ज़ल 
अभी कुछ और करिश्में ग़ज़ल के देखते हैं  
.
दिखाई देता था छप्पर ही ख़्वाब में हमको 
तुम आ गये हो तो सपने महल के देखते हैं 
.
हवा के दोस पे नामा ये कैसा है…
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Added by Sushil Thakur on July 4, 2013 at 12:30am — 8 Comments

बदी की राह से अब तो निकाल दे मुझको

बदी की राह से अब तो निकाल दे मुझको

खुदाया जब भी दे रिज्के हलाल दे मुझको

नहीं मैं राई को पर्वत, न तिल को ताड़ कहूं

ज़ुबान  साफ़ औ' सादा  ख़याल दे  मुझको .

तेरे लिए भी ये आसां नहीं है फिर भी कभी

तू आके चुपके से हैरत में डाल दे मुझको

जुनूने इश्क़ कहीं कुफ्र तक न पहुँचा दे

तू अपने गोशाये दिल से निकाल दे मुझको

मुझे भी पी के बहकना कभी गंवारा नहीं

मगर जो गिरने पे आऊँ, संभाल दे…

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Added by Sushil Thakur on July 3, 2013 at 3:00pm — 12 Comments

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