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कुमार गौरव अजीतेन्दु's Blog – June 2012 Archive (4)

घन गरज बरस प्यासी धरती पुकारे (रूप घनाक्षरी)

घन गरज बरस प्यासी धरती पुकारे ;

कृषक भी ताक रहे कब से ही आसमान |

मेघा टर्र-टर्र कर थकने लगे हैं जैसे ;

अब सुन ले उनकी अच्छा नहीं ये गुमान |

तुझ पर ही निर्भर खेती हमारे देश की ;

बिन तेरे हो जाएगी रूखी-सूखी सुनसान |…

Continue

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 23, 2012 at 6:02pm — 25 Comments

अतिथि आप बार-बार आइए (मनहरण घनाक्षरी)

अतिथि से गृहस्वामी बोला मेरे स्नेहपात्र;
आकांक्षा हमारी आप बार-बार आइए|
अतिथि ने अभिभूत कहा धन्य भाग्य मेरे;
इतनी ख़ुशी आपकी, कारण बताइए|
गृहस्वामी ने सुनाया, बड़ा अच्छा लगता है;
इतना तो निश्चित ही आप जान जाइए|
पर जो सुख मिलता है जाते देख आपको;
उस परमानंद से मुक्ति न दिलाइए||

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 19, 2012 at 12:30pm — 12 Comments

मैं वोटर हूँ...

मैं वोटर हूँ

एक आम मतदाता,

इसी देश का नागरिक

भीड़ का एक चेहरा

ज्यादा नहीं कमाता

शायद लिखना भी नहीं आता;

मेरा कोई संगठन नहीं

कोई नारा नहीं

हैलीकॉप्टर से तो दिखता भी नहीं

बहुत छोटा हूँ मैं

चिल्लाता हूँ कोई सुनता नहीं

इतना खोटा हूँ मैं;

इसी का आदी हूँ

शिकायत नहीं करता,

मेरा भी महत्त्व है

अचानक पता लगता,

पाँच सालों में; एक बार,

जब झुग्गियों में स्कॉर्पियो आती है,

काफिले आते हैं,

मैं "जनता जनार्दन" हो जाता हूँ

देसी…

Continue

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 16, 2012 at 12:10pm — 4 Comments

मन मेरे...

मन मेरे

हिम्मत न हार

जय तेरी होगी|

निरंतर अग्रसर हो

कर्म के पथ पर,

प्रत्याशा के रथ पर

मिटा के अंतर्द्वंदों को

त्याग आलस्य को,

घातक नैराश्य को

तुझमें नैर्गुण्य नहीं,

तू बिलकुल शून्य नहीं

तुझमें भी क्षमता है

अपनी महत्ता है|

स्वयं की पहचान कर

खुद पर अभिमान कर,

शंखनाद कर दे

अस्तित्व के संग्राम का,

भय क्या परिणाम का

निर्भीकता शस्त्र है

मार्ग प्रशस्त है,

कल्पना के चित्र को

यथार्थ पर उकेर,…

Continue

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 7, 2012 at 4:30pm — 10 Comments

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