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MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी)'s Blog – May 2012 Archive (3)

कमी है कौन सी कुदरत के कारखाने में ,


कमी है कौन सी कुदरत के कारखाने में ,
उलझ के रह गया इन्सान जो आबो -दाने में .

वोह जिसके दम से उजाला है मेरी आँखों में ,
उस्सी की आज कमी है गरीब खाने में .

मेरे नसीब में लिखी है ठोकरे शयेद ,
जो भूल बैठा हूँ तुझको भी इस ज़माने में .

समझ रहा था जिसे मै गरीब परवर है ,
उस्सी ने आग लगे है आशियाने में .

हटा जो मर्कज़े हस्ती से देखीय "रिज़वान",
भटक रहा है वही दरबदर ज़माने में .

Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on May 17, 2012 at 10:00pm — 8 Comments

ये है कंप्यूटर सदी यानि ज़माना है नया ,

मंजिले  ऊँची  बनाना  आज  की  तामीर  है , 

इस  सदी  की  दोस्तों  कितनी  अजब  तस्वीर  है ... 



ये  है  कंप्यूटर  सदी  यानि  ज़माना  है  नया , 

कितनी  आसानी  से  बदली   जा  रही  तस्वीर  है ... 



क्या  कटेगी  ज़िन्दगी  अपनों  की  मोबाईल  बगैर , 

ये  हमारे  दौर  की  मुंह …

Continue

Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on May 7, 2012 at 11:30am — 11 Comments

"न जाने क्यूँ किसी को खल रहा हूँ"

न  जाने  क्यूँ  किसी  को  खल  रहा  हूँ ,

मै  अपनी  रह  गुज़र  पर  चल  रहा  हूँ ....



दीया  हूँ  हौसलों का इसलिए मै ,

मुकाबिल  आँधियों  के  जल  रहा  हूँ ....



मै  तेरे  नाम  की  शोहरत  हूँ  शाएद ,

इसी  बयेस  सभी  को  खल  रहा  हूँ .....



मुझे  तू  याद  रखे  या  भुला  दे ,

मै  तेरी  याद  में  हर  पल  रहा  हूँ ....…



Continue

Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on May 5, 2012 at 12:30pm — 17 Comments

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