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Arun Sri's Blog – April 2012 Archive (4)

दो शब्द जीवन साथी से

सखी !

बस शब्द से कैसे

प्रकट तेरा करूँ आभार ?

 

क्या लिखूं ?

जिसमें समा जाए -

-नहाई देह की खुशबू

सुबह मेरी जो महकाती रही है !

-और होंठो की मधुर मुस्कान

जो बिखरी मेरे होंठो पे ऐसे खिलखिलाकर ,

भर गई मेरे ह्रदय में   

उष्णता अनमोल !

मरुथल में खिले जैसे

कुछ हँसी के फूल !

योग्य संभवतः नही पर

धन्य हूँ पाकर

दिए तुमने हैं जो उपहार !

सखी !

बस शब्द से कैसे

प्रकट तेरा करूँ…

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Added by Arun Sri on April 17, 2012 at 7:30pm — 11 Comments

पुरानी किताब

काश

कि उसी वक्त देख लेता

पलट कर पन्ने

उस किताब के ,

जो तुमने वापस कर दी

भीगी आँखों के साथ !

और मैंने उसे इंकार समझा

अपने प्रणय निवेदन का !

.

और जब आज

हम दोनों ने थाम रखे है

दो अलग अलग सिरे

जिंदगी के !

तो अनायास ही

हाथों में आई वो किताब !

थरथरा गया अस्तित्व !

जैसे कोई रेल गुज़री हो

किसी पुराने पुल से !

बिखर गए किताब के पन्ने !

और…
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Added by Arun Sri on April 17, 2012 at 11:59am — 23 Comments

गज़ल - जिन्हें डर है खुदा का

उन्हें हक है कि मुझको आजमाएं

मगर  पहले  मुझे अपना बनाएं

 

खुदा  पर है यकीं तनकर चलूँगा

जिन्हें डर है खुदा का सर झुकाएं

 

जुदा होना है कल तो मुस्कुराकर

चलो   बैठे   कहीं  आँसू   बहाएं

 

तुम्हारे  आफताबों  की वज़ह से

अभी  कुछ  सर्द  है  बाहर हवाएं

 

तिरा  दरबार  है मुंसिफ भी  तेरे

कहूँ  किससे  यहाँ  तेरी  खताएं

 

खता उल्फत की करने जा रहा हूँ

कहो  अय्याम  से  पत्थर…

Continue

Added by Arun Sri on April 3, 2012 at 11:00am — 20 Comments

सूरज भी उन्हें क्या देगा

मैंने देखा है -

हलांकि जार-जार टूटे हुए ,

हवादार

फिर भी उमस में डूबे हुए झोपडो में

जो चेहरे रहते है ,

इस जानलेवा भागम भाग में भी

वो चेहरे ठहरे रहते हैं !

ये ठहरा हुआ वक्त का मरहम

और फिर भी उनके जख्म

गहरे के गहरे रहतें हैं !

टूटी हुई छत से टपकती उदास धूप

नहीं सुखा पाती

सिसकती हुई छाँव की सीलन !

 

जिनके छिल चुके होंठ

नहीं उठा पाते

गूंगी हँसी का बोझ तक

लेकिन वो उठाए…

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Added by Arun Sri on April 2, 2012 at 10:37am — 10 Comments

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